गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021

पापा ओ बाबुजी (मैथिली कथा)

बंगलोरक साफ्टवेयर इंजिनियरक साँझ अलगे होइत छैक. बँगलोरक ट्रैफिक में गाड़ी चलेनाय कोनो युद्ध जीतब सँ कम नहि. लोक केँ आफिस सँ बेसी टेंसन ट्रैफिक में होइत छैक. एक बेर घरि पहुँचि गेलाक बाद दोसरे दुनियाँ. अधिकांश साफ्टवेयर इंजिनियर खाना बनि जेबाक बाट ताकैत अगिला दिनक योजना बनबैत छथि. इएह साँझक समय होइत छैक जखन मैथिल साफ्टवेयर इंजिनियर अपन गाम-घर मे फोन कऽ के हाल-चाल सुख दुख सुनबैत छथि. सांझुक पहर बंगलोर शहर मिथिला सँ हॉट-वायर सँ जुड़ल रहैत छैक. सोशल मीडियाक समय मे सेहो फोनक महत्व कम नहि भेलय. सोशल मीडिया सँ सूचित काएल गेल गप्पक कोनो मोजर नहि. फोन कऽ जमानाक अच्छैतो बुढ पुरान केँ फोन करब नितांत आवश्यक. मुदा सुभाष फोनो नहि कऽ सकैत छलाह. मोन मे एक हजार गप्प मुदा बाहर सब किछु शांत.

ई कथा हमर सबसँ प्रिय कथा थीक. ई तखन लिखल गेल छल जखन हम मैथिली लिखब सीखि रहल छलहुँ. एखनहुँ प्रायः सीखिए रहल छी. जँ प्रस्तुत कथा पाठक केँ नीक लागनि तखन टिप्पणी द्वारा सुचित काएल जाए. ओही सँ हमरा पुनः ऊर्जा भेटत. 

सुभाष अपन डेढ बरखक बेटा केँ एकटा रुम में नेने खेलबैत छ्लथि. खिड़की पर पर्दा लागि गेल छल. बेटा रुम सँ भागि नहि जाथि तें ओ रुमक केबाड़ सेहो बंद कऽ नेने छलाह. साँझ में बेटाक जिम्मेदारी हिनके रहैत छनि. ई बेटाकेँ कोरा में लैत छथि तखने कनियाँ भनसाघर में ढुकैत छनि. साँझ में कनियाँक जिम्मेदारी अलग आ हिनकर जिम्मेदारी अलग. डेढ़ बरखक बच्चा में ऊर्जा गहि गहि भरल रहैत छैक. कनियो ध्यान इम्हर उम्हर गेल आ बच्चा बच्चा केँ चोट लागि सकैत छैक. तेँ सुभाष एहि रुम केँ खाली राखने छथि, कोनो फरनिचर नहि, मात्र आ मात्र बच्चाक खेलौना रहति छनि. डेढ बरखक बच्चा केँ स्वयँ अपन ज्ञान होयब शुरु भ' जाएत छैक, किछु रुप मे ओ आत्मनिर्भर भेनाय शुरु क' दैत छैक. एखन सुभाषक बच्चा अपने खेलाय रहल छलनि. ई दरी पर अशोथकित भेल पड़ल छलाह. सब किछु शांत लागि रहल छल.    

ठीके तूफानक बाद तऽ शांति आबिते छैक, मुदा ई शांति एतेक दिन धरि रहतैक से सुभाष केँ बुझल नहि छलनि. पछिला मास जे हिनका अपन बाबुजीँ सँ बहस भऽ गेल छलनि से आब हुनका खराप लागैत छनि. मुदा ओ अपन बात पर एखनहुँ अडिग छलाह. ओहु मे हुनकर बाबु जी ओहि घटनाक्रमक बाद कहियो फोन नहि केने रहनि. कोनो आन माध्यम सँ बाबुजी सँ गप्पे नहि होइत छलनि.

सुभाष अपन मोन सँ दृढ छलाह. हुनका अपन केलहा पर कहियो कोनो पश्चाताप नहि होइत छलनि. अपने मोन केँ अपने बुझबैत छलाह. अपन तर्क केँ अपने समीक्षा करैत छलाह. हुनकर तर्क मे कोनो खोट नहि. सब किछु उचिते बुझना जाएत छलनि. मोन मे हरदम होइत छलनि जे समय बदलल, लोक सब सेहो बदलल मुदा हुनकर बाबुजी एखनो धरि १९वीँ शताब्दी मे जीवैत छथि. हुनकर बाबुजी हुनका अपन मरौसी वला खेत पथार बेचि एम.बी.ए तक के पढाई करौने छलाह. नहि तऽ एकटा प्राइमरी स्कूल'क शिक्षक बुते कतओ एत्तेक महग पढाई करबेनाय पार लागतनि. बैंक लोन गरीब लोक कें नहि भेटैत छैक. लोक कें खेत पथार आइयो बेचैए पड़ैत छनि. सुभाषक बाबुजी कें शुरु मे लागलनि जे सब किछु असुलाए गेलनि.  आब सुभाष केँ बहुत बढ़ियाँ नौकरी भेटल छनि. बहुत बढ़ियाँ घर मे विवाह सेहो भेलनि. नौकरी भेटलाक किछु बरखक धरि ओ चुप रहलाह. मुदा ओकर बाद सुभाषक बाबुजीक कहय हुनका कहय लागलनि जे हुनका कम सँ कम दुइ बीघा खेत कीनि दैथि. कम सँ कम गाम'क लोक केँ ओ जवाब द’ सकैत छलाह जे अपन बेटा मे जे खर्च केलहुँ ओ सूद सहित वापस भ' गेल.

मुदा शुभाष'क सोच अलग छल. हुनकर कहब छल जे आब गाम घर मे के रहैत छैक? गाम'क एत्तेक तरह'क राजनीति हुनका बुते पार नहि लागतनि. गाम घर मे जे पैसा खर्च कऽ जमीन लेब ओहि सँ बढियाँ शहर मे जमीन लेल जाए. ओकर मूल्य दिन दुना आ राति चौगुना भेल जाएत. 


एहेन बात नहि छलैक जे शुभाष'क बात सँ हुनकर बाबुजीक असहमति छलनि. मुदा हुनकर कहब छलनि जे गाम मे दू बीघा जमीन मात्र चालीस लाख मे भ' जेतनि. सुभाष मात्र दुइ बरख में एतेक पैसा जमा कऽ सकैत छथि. ई मात्र दुइ बीघा जमीनक गप्प नहि छनि. बाप दादाक अरजल जमीन केँ हुनका बेचबाक कोनो अधिकार नहि रहनि. सुभाषक दुइ बरखक कमाइ सँ पितरक प्रतिष्ठा बचि जेतनि. अपन पुरखा लोकनिक खेत-पथार बेचला सँ ओ लाज'क तर मे दबल छथि. गाम घर में जमीन बेचब सँ बेसी लाजक कोनो गप्प नहि. ओ जमीन नहि बिकाएल छल. हुनकर पुरुषार्थ पर प्रश्नवाचक चिह्न लागल छलनि. ओ दस लोकनि मे मूड़ी नहि उठा सकैत छथि. सुभाष'क मात्र दुइ बरखक कमाई सँ हुनकर पुरुषार्थ निष्कलंकित भऽ जेतनि. समाज मे किओ किनको उलहन नहि दैत छैक. मुदा खेत-पथार बेचब दुर्भाग्यक निशानी मानल जाएत छैक. सुभाषक दुइ बरखक कमाइ सँ समाज मे इज्जत पुनः वापस भ’ जेतनि.

सुभाष'क विचार अलग छलनि. ओ अपन एम.बी.ए. डीग्री'क भूमिका दैत अपन बाबु जी केँ कहैत छलाह जे गाम मे चालीस लाख टाकाक निवेश कनिओं बुद्धिमानी नहि. पुरे मिथिला सँ लोक महानगर पलायन कऽ रहल अछि. लोक डीह सेहो बेचि लैत छथि. माँ-बाबुजीक बाद गामक खेत केँ देखनिहारे के? ओ एहेन पढाई पढने छथि जाहि सँ हुनकर नौकरी सदिखन महानगरे टा मे सम्भव छनि. एतय चालीस लाख टाकाक गप्प नहि ओकर उपयोगिताक गप्प छैक. आ चालीस लाख टाका उपरी कमाई नहि छिअनि. ओ मेहनतक कमाइ छनि-- खून पसेनाक कमाई. कोना लगा देताह मात्र भावनात्मक गप्प पर जे पूर्वजक अरजलाह सम्पति के नहि बेचबाक चाही.        

दुनू लोकनि अपन अपन जगह नीक मुदा दुनू लोकनिक विचार मे कोनो सामजस्य नहि. दुनू लोकनि एक दोसराक गप्प केँ महत्वहीन बुझैत छलाह. एकर प्रतिफल एहेन भेल, जे, फोने पर एक सामान्य गप्प सप्प एक गरमा गरम बहस मे बदलि गेल.

हुनकर बाबु जी कहि देलकनि, "हम जे खेत पथार बेचि अहाँ केँ पढ़ेलहुँ ओकर फल अहाँ इएह दैति छी"

सुभाष केँ बड्ड कहराप लागैत छलनि. कोन बाप अपन धिया पुता केँ नहि पढबैत छैक. की ओ पैसा लऽ केँ अय्यासी केने छथि. कॉलेजक फीस भरने रहथि. प्रत्येक गप्प पर खेत पथार बेचबाक गप्प हुनका बहुत दु:खित करैत छलनि. हुनका सँ रहल नहि गेलनि, "अहाँ जे हमरा पढेलहुँ से कि अनुचित केलहुँ की? कोन बाप अपन बेटा केँ नहि पढ़बैत छथि ?"

"अहाँ के एखन गदहपचीसी अछि पैघ भेलाक बाद अपने बुझि मे आबि जाएत. गदहपचीसी अहाँ बुधि के झाँपने अछि." बाबुजी तामस में इएह टा कहि सकलनि.

गदहपचीसी सुनि सुभाष के बहुत खराप लागलनि. बाबुजी कें खराप लागलनि जे बेटा मुँह लागल जवाब दैत छनि गप्प बुझबाक प्रयत्ने नहि करैत छनि. सुभाष कें बुझल छलनि जे हुनकर बाबुजी स्वाभिमानी छथि. स्वाभिमानी लोक झुकैत नहि छैक. सुभाष केँ खराप लागैत छलनि. ओ फोन करय चाहैत छलाह. मुदा हुनका बुझल छलनि जे हाल चालक गप्पक बाद पुनः वाएह गप्प शुरु होयत. ओहि बहसक कोनो नतीजा नहि निकलतनि. पुनः टोकाचाली बंद. चालीस लाख टाका ओहिना आबैत छैक? जे इमोशनल गप्प पर ओ ट्रांसफर कऽ देताह. बाबुजीक स्वाभिमान हुनका अपन गप्प सँ टस सँ मस हुअए नहि देतनि. भऽ सकैत छलनि जे बाबुजी गप्पे नहि करैथ. साँझ मे प्रति दिन इएह उहा-पोह रहैत छलनि. तेँ चाहियो को सुभाष पिछला एक महीना सँ फोन नहि केने छलाह. हुनका समझौता'क कोनो गुन्जाइस नहि बुझिमे आबैत छलनि. दुनू लोकनि’क जीवन अपन अपन रास्ता पर चलैत छलनि. जतय सुभाष'क बाबु जी नओ हजार टाका'क अपन पेन्सन मे अपन जिन्दगी खुशी-खुसी बीतबैत छलाह ओतय सुभाष प्रति दिन शेयर मारकेट आ दोसर चीज सँ अपन पैसा केँ बढ़ेबाक हर सम्भव प्रयास करैत छलाह.

रुम एखनहुँ धरि बंद छल. पर्दा लागल छल. बाहरक गतिविधि रुम धरि नहि पहुँचैत छल आ रुमक गतिविधि बाहर धरि नहि. सुभाषक बेटा हुनकर कोरा मे आबि गेल छलनि. ओ बेटा केँ खेलबैत छलाह आकि अपने खेलाइत छलाह से नहि जानि. ओ पूर्ण रुप सँ व्यस्त रहबाक प्रयत्न अवश्ये कऽ रहल छलाह. रहि रहि केँ दनु लोकनि बारी बारी सँ किलकारी मारैत छलाह. सुभाष बच्चा केँ देखेबाक प्रयत्न करैत छलाह जे अहाँ सँ बेसी बचपन हमरा मे एखनहुँ बचल अछि. हमरा अहाँ पराजित नहि कऽ सकैत छी. छोट छोट हरकत आ ओहि पर किलकारी. किलकारी पर किलकारी. हँसी ठट्ठा पुनः किलकारी. बेटा साबित करए चाहैत छलनि जे ओ बेसी काबिल छथि. मुदा सुभाष बुधियारी मे जीति लेबाक प्रयत्न करैत छलाह.

सुभाष अपना आप केँ एहि खेल मे सतप्रतिशत झोंकि देने रहथि. हुनकर ध्यान तखने भंग भेलनि जखन बच्चा हुनकर मोंछ पकड़ि केँ जोर सँ खीचलकनि. अपना जानैत ओ सहज होयबाक हर सम्भव प्रयास करय लागलाह मुदा मोछक दर्द सँ आँखि सँ दुइ बुनि नोर अपने आप खसि पड़लनि. कनि कालक लेल हुनका भेलनि जे डेढ़ सालक बच्चा हुनका पीड़ा देने रहनि. वाएह बच्चाक कारण ओ कानल छथि.

नहि ओ कानि नहि सकैत छथि. ई नोर अपने खसल छनि. डेढ बरखक बच्चा कतओ तीस बरखक लोक केँ कना सकैत छैक, पीड़ा दऽ सकैत छैक. एहि बच्चा मे एतेक ताकत कि ओ हुनका पीड़िक कऽ सकैत छनि.

बौआ हुनकर कनियाँक केश सेहो कतेक बेर खीचने छलनि. मुदा हुनकर पत्नी बच्चा बौआ केँ दोषी मानि कतेक बेर कहने छलथिन्ह, "जे ई छौड़ा बदमाश भ' गेल अछि". मुदा ओ ते पुरुष छथि. तीस सालक युवा. किएक स्वीकार करताह जे हुनकर बेटा हुनकर मोछ खीचने छल जाहि सँ हुनका आँखि सँ नोर खसि पड़लनि. ओ पुरुष छथि कहियो अपन गलती केँ स्वीकार नहि क' सकैत छथि. ओहु मे डेढ़ साल'क बच्चा यदि मोंछ पकड़ि के खीचनि आ हुनका आँखि सँ नोर खसि पडनि, एहि सँ पुरुष जाति'क स्वाभिमान केँ ठेस पहुँचैत छैक.

सुभाषक अवचेतन मस्तिष्क सँ एहि गप्प सँ भागय चाहैत छल. मुदा यथार्थ इएह छल जे हुनका आँखि सँ जे दू बुनि नोर खसलनि. बेटा नोर खसैत देखि लेने छलनि. पहिने अपन पापा'क नोर पर तेँ खूब जोर जोर सँ हँसलाह मुदा पापा'क दिस सँ कोनो प्रतिक्रिया नहि देखि ओ ठाढ़ भए, बामा हाथ सँ हुनकर गरदनि पकड़ि, दहिना हाथ सँ हुनकर नोर पोछे लागल छलनि. ओ डेढ़ बरखक बेटाक नोर पोछब नहि छल ओ हुनकर पराजित भेलाक सद्यः सबूत छल. सुभाष अपन बेटाक सोझां मे देखार हुअए नहि चाहैत छलाह. अपन गतिविधि सँ साबित करय लागलाह जे हुनका किछु नहि भेलनि.

सुभाष बाहर सँ नहि हारल छलाह मुदा अन्दरे-अन्दर हुनका बुझल छलनि जे हुनका आँखि मे नोर किएक आयलनि. सत्य हुनका पूर्ण रुप सँ बुझल छलनि. मुदा हारि केँ एहनो नहि छल जे ओ हारि केँ दुःखी छलाह. ओ हारल छलाह मुदा हारि केँ खुश छलाह.आ इएह अन्तर छल हुनका मे आ हुनका कनियाँ मे. कनियाँ हारला'क बाद हारि स्वीकार करैत छलीह. मुदा हारलाक बाद दुःखी भ' छलीह. सुभाष बाहर सँ स्वीकार नहि करैत छलाह जे हारल छथि. मुदा अन्दर सँ हुनका हारि केँ नीक लागैत छलनि. बल्कि एहेन हारि ओ कतेक बेर हारए चाहैत छलाह. भगवानो केँ ई बात नीक जेकाँ नहि बुझल अछि, जे प्रत्येक बाप केँ अपन बेटा सँ हारबा मे नीक किएक लागैत छनि.

दुनियाँ मे एहेन कोनो बाप नहि जिनकर बच्चा हुनकर मोंछ पकड़ि केँ नहि खीचने हेतनि. अपितु ओ बाप अभागल हाएत जिनकर बौआ हुनकर मोंछ पकड़ि कें नहि खीचने हेतनि.

बच्चा सङ असगरे बैसल सुभाष केँ अपन बचपन याद आबए लागलनि. मोन ते नहि छलनि मुदा ओ एहि बात केँ सोचि केँ बहुते भावुक होइत छलाह जे कहियो ने कहियो ओहो अपन बाबुजी'क मोंछ पकड़ि के खीचैत हेताह. आ हुनको बाबु जी केँ कहियो ने कहियो आँखि सँ नोर खसैत हेतनि. क्षणिक पराजय केँ हुनकर बाबुजी सेहो अस्वीकार करैत हेताह. प्रत्येक मोंछ खीचबाक बात हुनकर बाबुजी केँ सेहो आनंद आबैत हेतनि.

सुभाषक कोरा सँ बच्चा पुनः उतरि गेल छल. ओ अपने खेला रहल छल. पुनः रुम मे शांति पसरि गेल छल. मुदा नहि जानि किएक सुभाष केँ लागलनि जे एहि शांति आ हुनकर मोन'क शांति मे बहुत समानता छैक. अपन बाबु जी' सँ भेल बहस आ हुनकर बेटा'क मोंछ खीचनाय मे समानता बुझा पड़लनि. अपितु हुनका ई लागय लागलनि जे हुनका अपन बाबु जी सँ बहस नहि भेल छलनि. अपितु पुरखाक खेत पथारक खेल मे ओ खेल खेल मे ओ अपन बाबु जी'क ऊज्जर-ऊज्जर मोंछ पकड़ि के जोर सँ खीचने छलाह आ नहियों चाहैत हुनकर बाबु जी'क आँखि मे नोर आबि गेल छलनि. अपन बच्चा आ अपन बाबुजीक बीच मे ओ अपना आप केँ असगर आ असहाय बुझए लगलाह. पहिने तऽ कोनो समस्या भेला पर सीधे अपन बाबुजी सँ समाधान'क लेल कहैत छलाह जेना हुनकर बाबु जी नहि एकटा कल्प वृक्ष हो, जिनका लऽग मे प्रत्येक समस्या'क समाधान हो. मुदा एहि असमंजस मे एखन ओ अपन बाबु जी केँ फोनो नहि कऽ सकैत छलाह. इएह गप्प हुनका आओर असहाय बनाबैत छलनि. अपन असहाय भेल मोन केँ बुझेबाक प्रयत्न करए लागलाह. ई की थीक? असहाय भेल मोन आकि गदहपचीसी. तीस बरख मे सेहो गदह पचीसी आबैत छैक. सुभाष अनुभव कऽ रहल छलाह.  हठाते मोबाइल फोन'क घँटी बाजल.

सुभाष झट दऽ उठाए देखलनि. मोबाइल मे लिखल आबैत छल, "बाबुजी इज कालिंग". हुनका हिम्मत नहि होइत छलनि जे फोन उठाए किछु कहथि. मुदा साहस जुटाए, बजलाह: , "हेल्लो! बाबुजी प्रणाम हम सुभाष बाजि रहल छी".

उम्हर सँ जवाब आएलनि, "अहाँक हाल चाल एक महीना सँ नहि भेटल छल. मोन कोनादन लागैत छल. मात्र हाल-चाल लेल फोन केलहुँ. से पहिने बताऊ जे अहाँ केहेन छी? सौभाग्यवती  कनियाँ केहेन छथि? आ बौआ केहेन छथि?"

ओ बजलाह, "बाबु जी एतय हमरा लोकनि सपरिवार ठीक अछि, बौआ हमरे लग खेला रहल अछि, कनिएँ आफिस मे हमरे काज बढ़ि गेल अछि, ओना सब किछु बहुत बढ़ियाँ".

हुनकर बाबुजी कहए लागनि, "से हम कहैत रही की, जे हम नीक जेकाँ सोचलहुँ, ठीके आब गाम घर मे जमीन नेने कोनो फायदा नहि. अहाँ शहर मे जमीन लऽ छोड़ि दिऔक. ओकर दाम बहुत बढ़तैक. आब हम कतेक दिन'क पाहुने छी. कहियो भगवानक घर सँ बुलावा आएत आ हम उठि पुठि केँ चलि जाएब".

ओ आगु बजलाह, " हमरा चिन्ता केवल अहाँ लोकनिक लेल रहैत अछि. दुइ दिन बात नहि करैत छी ते कोनादन लाग' लागैत अछि, से एकेटा अनुनय अछि जे फोन सँ हमरा अपन आ बौआ लोकनिक हाल चालि दैत रहब."

फोन कटि गेल छल. सुभाष देखलनि जे हुनकर बौआ एखनो खेला रहल छथि आ हुनका देखि ओ मुस्कि मारि रहल छथि. कनिक काल लेल हुनका भेलनि जे ओ मुस्कि सहज नहि मुदा एक कुटिल मुस्कि थीक. कनि देर लेल ओ बिसरि गेल छलाह जे डेढ़ साल’क बच्चा’क मुस्की मे कुटिलता कोना आबि सकैत छैक.

फेर हुनका भेलनि जे ओ बच्चा नहि ओ खुदे छथि आ हुनकर बाबु जी आगु मे ठाढ़ छथि आ ओ ओहने मुस्की मारि अपन बाबु जी केँ देखि रहल छथि. हुनकर कोँढ़ फाटय लागलनि. किछु नहि नुझि मे एलनि. हुनका मुँह सँ एक्के शब्द निकललनि, "बाबुजी!.. बाबुजी... बाबु जी...". तकिया मे मुँह नुकाय ओ कानय लागलाह. ई बात हुनकर बौआ देखि नेने छल. ओ फेर सँ लऽग आबि अपन बामा हाथ हुनकर गरदनि मे लपेटि अपन दायाँ हाथ सँ हुनकर नोर पोछए लागलनि. सुभाष फेरसँ हँसय लागलाह मुदा एक मोन अवसाद हुनकर करेजा मे नुकाएल छल. 


 

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