बुधवार, 4 अगस्त 2021

पहली कहानी - श्यामसुंदर की दूसरी घरवाली

तेरह वर्षीय महिन्दर की माँ ने जोर देकर उससे पुछा, “बताओ ! तुम गम्हरियाबाली के साथ कापी कलम लेकर निर्जन स्थान पर क्यों जाते हो.” 

“बोला ना माँ, वह मुझे उसके मनिआर्डर के पैसे का हिसाब करने के लिए बुलाती है”, महिन्दर फिर से वही रटा रटा जवाब दिया. 

“बेवकूफ मत बनाओ, तुम्हारे कापी के पन्ने फटे हुए हैं. हिसाब किताब वाला पन्ना कोई फाड़ता है क्या? पिछले छह महीना से देख रही हूँ, तुम कुछ बताते ही नहीं”.

“माँ परेशान मत हो, कुछ बात नहीं मैं पैसे का हिसाब करने ही जाता हूँ, उसको लगता है कि मेरा गणित अच्छा है तो गलती नहीं होगा.”

“यह बात मैं मानने के लिए तैयार ही नहीं हूँ. तुम उसके साथ घंटों गायब रहते हो. गम्हरिया गाँव डाइन औरतों के लिए जाना जाता है. निर्जन स्थान पर हिसाब किताब नहीं होता है. वहाँ साधना हो सकती है. कहीं तुमको वह भी झाड़-फूंक तो नहीं सीखा रही?”

महिन्दर आठवीं कक्षा में पढ़ता है और अपने कक्षा में हमेशा अव्वल आता है. वह दकियानूसी बातों में विश्वास नहीं करता है. वह अपनी माँ का प्रश्न किसी तरीके से टाल देना चाहता है. लेकिन डाइन-झाड़-फूंक इत्यादि की बात सुनकर वह चिढ़ जाता है.     

पिछले छह महीना से महिन्दर की माँ देख रही है कि धनुकटोली की एक बहु गम्हरियावाली के साथ वह कापी कलम लेकर निर्जन स्थान पर जाता है. पूछने पर वही रटा रटाया जवाब दे रहा है कि वह मनिआर्डर के पैसे का हिसाब करने जाता है. शुरु में महिन्दर की माँ कुछ नहीं बोलती है. भला हिसाब किताब वाली बात पर भी कोई बोल सकता है क्या? महिन्दर को विद्या है इसीलिए उसे हिसाब किताब के लिए बुलाया जाता है. पहले दो महीना महिन्दर की माँ ने जाने दिया. तीसरे महीने जब फिर से महिन्दर कापी कलम लेकर निर्जन स्थान से गम्हरियाबाली के साथ लौटा तो उसे शक हुआ. बिना बताए महिन्दर का कापी चेक करने लगी. उसमें कुछ हिसाब किताब नहीं लिखा था. अलबत्ता कुछ पन्ने अवश्य फटे थे. महिन्दर की माँ को अब शक होता है. 

चौथे महीने में वह कड़ाई से पुछती है. महिन्दर उसी बात का रट लगा रखा था कि वह हिसाब किताब करने जाता है. उसकी माँ गम्हरियाबाली से भी पूछती है. वह भी वही बात बोलती है कि वह पैसे का हिसाब किताब करवाने उसे बुलाती है. दोनो के उत्तर शब्दश: मिल रहे हैं. इस बार भी कापी के पन्ने फटे हुए हैं. यह हो ही नहीं सकता है कि हिसाब किताब करने कोई निर्जन स्थान पर जाता हो. महिन्दर की माँ को पता है, गम्हरिया गाँव में बहुत डाइन सब है. हो सकता हो गम्हरियाबाली को डाइन विद्या आता हो. हो सकता है महिन्दर को ऐसी ही साधना के लिए निर्जन जगह पर बुलाती हो. 

पाँचवाँ महीना भी बीता. आज जब छठे महीना में भी महिन्दर वही रटा-रटाया बात बोलता है तो उसकी माँ को गुस्सा आ जाता है. महिन्दर के गाल पर दो थप्पड़ रसीद करती है. महिन्दर तिलमिला उठता है. “नहीं बताऊँगा”, वह भाग जाता है.  

यदि महिन्दर का पिताजी गाँव में होता तो माँ की बातों को दुत्कारने की उसकी हिम्मत नहीं होती. गाँव के पुरुष दूर देश कमाने चले गए हैं फलस्वरूप गाँव के किशोर अनुशासनहीन हो रहे हैं. 

नहीं छोड़ेगी महिन्दर की माँ. वह पंचायत बैठाएगी. अपने होनहार बेटे को बिगड़ने नहीं दे सकती. महिन्दर की माँ ने पंचो के पास फरियाद लेकर पहुँची. 

गाँव में उस बूढ़े पाकड़ के पेड़ के नीचे आज पंचायत होने वाला है. यह पेड़ गाँव का सामुदायिक केंद्र का भी काम करता है. लगभग सौ मीटर के व्यास में फैले इस बुढ़े पेड़ की छाया में पिछले दो सौ साल से हजारों पंचायत बैठी है. गाँव का ग्राम देवता भी इसी पेड़ के नीचे निवास करते हैं. इस पेड़ के नीचे कोई झूठ नहीं बोलता. यहाँ का फैसला सभी को मान्य होता है. कोसी के दो बाँधों के बीच में बसा इस गाँव के जमीन को कोसी नदी धीरे धीरे अपने पेट में ले रही है. कभी यह गाँव बहुत ही समृद्ध हुआ करता था. इस गाँव के अधिकतम किसान को परिवार चलाने लायक भी उपज नहीं होती. छोटे बड़े सभी किसान दूर देश कमाने जाने लगे हैं. तीन साल पहले धनुकटोली का श्यामसुंदर पंजाब कमाने गया है. और मिसिरटोली के महिन्दर का पिताजी दिल्ली में दरबानी का काम करने लगे हैं. गम्हरियाबाली श्यामसुंदर की दूसरी घरवाली है. इस गाँव में प्रत्येक बहु को उसके मायके वाली गाँव का प्रतिनिधि समझा जाता है. इसीलिए वह गम्हरियाबाली के रुप में जानी जाती है.  महिन्दर की माँ को शक है कि वह उसे झाड़ फूंक सिखाती है. सुना है गम्हरिया में बहुत डाइन है. डरना स्वाभाविक है. 

सुना है, महिन्दर को गम्हरियाबाली ने सातों विद्या नाश होने का किरिया दे रखी है. वह किसी को नहीं बताएगा कि कापी कलम लेकर निर्जन जगह पर क्या करने जाता है. महिन्दर किसी भी कीमत पर अपना विद्या नाश नहीं करेगा.   

गम्हरियाबाली को अंदाज नहीं था कि इस छोटे से बात पर पंचायत भी बैठ सकती है. इस गाँव के अधिकतम पुरुष बाहर रहते हैं. गाँव में केवल औरत, बुढ़े और बच्चे ही रहते हैं. गम्हरिया में ऐसा मामला आता तो लोग आपस में मिल बैठकर सुलझा लेते. पंचायत तो बड़े बड़े मुद्दों के लिए होता है, किसी का जमीन हड़प लिया हो, किसी का कपार फोड़ दिया हो, कोई किसी के इज्जत पर हाथ डाल दिया हो. इतने छोटे-छोटे बात पर इस तरह पंचायत नहीं बैठती. गम्हरियाबाली को पूरे गाँव पर गुस्सा आता है. वैसे तो बहुओं को हमेशा अपना मायका ही अच्छा लगता है लेकिन इस गाँव की बहुएं अक्सर इस गाँव को कोसती रहती है और बहुओं का कोई विरोध नहीं होता. मजाल है किसी अन्य गाँव की बहु अपने ससुराल को सार्वजनिक रुप से कोसे.   

इस गाँव में छोटे-छोटे बात पर पंचायत बैठ जाना आम है. लेकिन जितना बड़ा मुद्दा उतना ही बड़ा पंचायत. यह छोटा मुद्दा है अतः टोले के कुछ लोग मिलकर ही इसका निपटारा करने वाले हैं. पंचायत की बात सुनकर गम्हरियाबाली को उसके सास ने पुछा. लेकिन वह उसे गुदानती ही नहीं है. ससुर ने पुछा, तो उनको भी वही रटा रटाया जवाब दे दी कि हिसाब किताब करने जाती है. गम्हरियाबाली अपने ससुर को सब बात बता देना चाहती है, लेकिन वह ससुर से कैसे कहे, किस मुंह से समझाए कि महिन्दर को कापी कलम के साथ आए दिन किसलिए बुलाती रहती है? 

पंचायत की बात पुरे गाँव में आग की तरह फैलती है. गम्हरियाबाली सी अक्षर भी नहीं पढ़ी है, उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है. फिर महिन्दर के साथ कापी कलम लेकर क्या करती है, यह पूरे गाँव के लिए यह कौतूहल का विषय है. महिन्दर गाँव का होनहार लड़का है. अपने क्लास में हमेशा फर्स्ट आता है. महिन्दर के पिताजी दिल्ली जाते समय उसको बहुत समझाया था, “बेटा अब वह दिन नहीं रहा. गाँव में जमीन बची नहीं. पढ़ लिख लोगे तो इनसान बन जाओगे. नहीं तो जीवन भर मजदूरी करना पड़ेगा”. महिन्दर भी अपने पिताजी की बात का गाँठ बाँध लिया. सुबह शाम नियमित पढ़ता है. कभी भी स्कूल में अनुपस्थित नहीं रहता. होमवर्क समय से करता है. इस गाँव में गम्हरिया के डाइन का किस्सा सबने सुन रखा है.  महिन्दर की माँ का बात भी वाजिब है. अब तो पंचायत ही फैसला करेगा. 

धनुकटोली की कुछ औरतें गम्हरिया वाली को पंचायत में जाने से पहले पूछी कि कापी कलम लेकर निर्जन जगह पर घण्टों क्या करती है, तो उसने बहाना मार दिया. उसने बताया कि उधर बकरी चराने गयी थी और महिन्दर से उस पैसे का हिसाब किताब करवा रही थी जो श्यामसुंदर ने मनिआर्डर से भेजा था. गम्हरियाबाली, कैसे बताए उन औरतों को असल बात ! लोग क्या समझेंगे?  महिन्दर की माँ ने उसके कापी में कई बार देखा, कहीं हिसाब किताब जैसा चीज नहीं लिखा था. अलबत्ता हरेक बार कुछ पन्ने जरूर फटे हुए मिलते थे. फटे हुए पन्नों में ही राज छुपा है! 

महिन्दर की माँ लाचार थी. गम्हरिया में इतने डाइन है क्या यह बात नजरअंदाज करने लायक है? स्कूल के सभी शिक्षक बोलते हैं कि महिन्दर होनहार है. कहीं बिगड़ गया तो? महिन्दर की माँ समय से पहले पाकड़ के पेड़ के नीचे पहुँच जाती है. पंचायत में कुछ लोग आ चुके हैं. पंचायत की कार्यवाही शुरु होने से पहले माहौल बनाना आवश्यक है. वह गुस्से में वहाँ खड़े लोगों को बोलती है, “गम्हरियाबाली की माँ हाँकैल डाइन है. जी हाँ हाँकैल, डाइन जो पेड़ पौधे को अपनी तंत्र विद्या से गाड़ी की तरह हाँकती है. 

महिन्दर की माँ पर कोई ध्यान नहीं देता है. मुख्य पंच अभी तक आए नहीं हैं. अभी तक आए अन्य लोगों का मुख्य उद्देश्य मात्र मनोरंजन ही है. महिन्दर की माँ को और गुस्सा आता है. बिना किसी अमुक व्यक्ति को लक्ष्य करते हुए, वह बड़बडाती है, “निर्जन जगह पर पैसें का हिसाब नहीं होता. निर्जन जगह पर साधना सिखायी जाती है.”  

मिसिरटोले का ठकना नया नया मैट्रिक पास किया है. वह अब बच्चा नहीं रहा. वह हाफ पैंट नहीं पहनता. वह अब लूँगी पहनने लगा है. हालाँकि अभी उसको कोई नहीं पुछता, लेकिन भविष्य में वह अपने आपको पंच के रुप में देखता है. पंचायत में वह अपना अकादमिक उपस्थिति दर्ज कराता है. “काकी! ये डाइन-वाइन कुछ नहीं होता है. ऐसी बातोँ को तूल मत दीजिए”. कुछ और बात है. गम्हरियाबाली वाली महिन्दर को किरिया दी हुई है, सच बताया तो सातों विद्या नाश.” 

“रे लड़का सब कुछ तुम्ही जानता है. नया नया मैट्रिक पास किया है तो मुझको ही पढाएगा. गम्हरिया वाली यदि पाक-साफ है तो मुझे बोल देती. कौन मानेगा उसकी बात, कि आए दिन महिन्दर को लेकर निर्जन जगह पर ले जाकर क्या करती है?”  

गाँव में महिन्दर का घर मिसिर टोला के सबसे अंत में पूरब और उत्तर के कोने में है. और श्यामसुंदर का घर धनुकटोली के सबसे शुरुआत में पश्चिम-दक्षिण के कोने में है. हालाँकि धनुकटोली और मिसिरटोली के लोगों का दैनिक सामाजिक सरोकार कम ही रहता है, धनुकटोली के लोग अलग और मिसिरटोली के लोग अलग, लेकिन इन दोनों का घर इतने पास-पास है कि एक दूसरे के घर में क्या पक रहा है गंध से पता चल जाये. 

धनुकटोली के लोग नाराज भी है और आश्चर्यचकित भी. पाकड़ के पेड़ के नीचे पंचायत होना इस बात का प्रतीक है कि मुद्दा बड़ा है और संवेदनशील भी. जिसको देखो एक ही बात बोल रहा है--- अब ये दिन आ गया. विदेशी मरड़ की बहु पर पंचायत बैठी है. कोई और होता तो कोई बात नहीं, आपत्ति तो इस बात का है कि विदेशी मरड़ के “बहु” पर पंचायत बैठ गयी है.  विदेशी मरड़ कोई छोटा-मोटा आदमी नहीं है. पूरे धनुकटोली का सर्वे-सर्वा है. अभी एक दशक पहले की बात है, कोसी में कटने से पहले वह चालीस बीघा खेत का जोतेदार हुआ करता था. विदेशी मरड़ का बाप बहुत ही प्रतापी था. सुना है अँग्रेज सिपाहियों के मुखबिरी का काम करता था. अँग्रेज भी बहुत ख्याल रखा था. मिसिरटोले के विवादित जमीन को विदेशी मरड़ के पिताजी के नाम कर दिया. विदेशी खुद भी बहुत ही कर्मठ है, आजादी के बाद अपने सम्पत्ति में लगातार इजाफा करता गया. अगहन महीने के बाद पूरे टोले में पुआल (पराली) का सबसे ऊँचा टाल उसी का होता था, ऐसा कि एक कोस दूर से ही लोग उसका टाल देखकर उसके घर को पहचान ले. मरड़ उसका टाइटिल नहीं है. इस गाँव में अपने टोले के प्रमुख व्यक्ति को मरड़ कहा जाता है. यह उपाधि है जो अनौपचारिक रुप से समुदाय प्रमुख को दिया जाता है. इस पुरे गाँव में विदेशी मरड़ कुछ बुद्धिमान लोगों में गिना जाता है.  धनुकटोली ही नहीं, मिसिरटोली और अन्य पंचायत में भी उसका बात माना जाता था. एक बार विदेशी मरड़ ने फैसला ले लिया तो सबको मानना पड़ता था. ऐसा धाक था. विदेशी मरड़ भी सबका ख्याल रखता था. प्रत्येक फैसला ईमानदारी से लेता था. पूरे गाँव में इज्जत थी. 

पिछले चुनाव में काँग्रेसी उम्मीदवार बिदेशी मरड़ के घर चाय पीकर गए थे. सबको पता है विदेशी मरड़ जो बोलेगा उस टोले के लोग वही बात मानेगा. इस गाँव के लोग अब कांग्रेस को वोट नहीं देते लेकिन कांग्रेसी उम्मीदवार को विदेशी मरड़ के रुतवे का अंदाज था. एक बार वह बोल दिया तो उसके टोले के दो सौ वोट कहीं नहीं गया.  

विदेशी का मात्र एक ही बेटा था श्यामसुंदर. बहुत ही दुलारु था. जब वह मैट्रिक में तीन बार लगातार फेल हुआ तो विदेशी ने उसकी शादी कर दी. उसकी शादी तब हुई जब बिदेशी का वैभव कायम था. श्यामसुंदर की पहली घरवाली भी बहुत बड़े घर की बेटी थी. नाश्ते में दूध रोटी ही खाती थी, जब तक हाथ दूध में कलाई तक नहीं डूब जाए वह नहीं खाती थी. शुरु में विदेशी को भी कोई समस्या नहीं था. हमेशा दो तीन भैंस का दूध अपने घर में ही होता था. श्यामसुंदर और उसकी पहली घरवाली शानो शौकत में अपना जीवन बिता रहा था. लेकिन पिछले दस साल में परिस्थिति बदल गयी. कोसी ने विदेशी के सारे जमीन अपने पेट में ले लिया. धान की उपज कम होती गयी और बिदेशी मरड़ का टाल छोटा होता गया. परिवार चलाने के लिए विदेशी मरड़ को अब दूसरे का जमीन बटाई करना पड़ा. जब बटाई पर भी आफत आने लगी तो उसने अपने बेटे श्यामसुंदर को समझाया, “पेट पालने के लिए अब इस गाँव में कुछ भी नहीं बचा है. तुमको पंजाब ही जाना पडे‌गा. सुना है वहाँ की जमीन सोना उगलती है. वहाँ के सभी किसान उद्योगपति की तरह अमीर है”. 

श्यामसुंदर ने कुछ दिन टालमटोल किया. लेकिन परिस्थिति के आगे उसने भी हथियार डाल दिया. प्रत्येक वर्ष बरसात के महीने में पंजाब जाने वाले युवकों के समुह में शामिल हो जाता. अगले नौ महीने पंजाब के कृषक परिवार में मजदूरी करता और फिर घर लौटता. दूर्गा पूजा, दीपावली, छठ, होली सबकुछ पंजाब में ही मनाता. उसकी पहली घरवाली का मायका कोसी के बाहर में पड़ता था, उसका मायका अभी भी समृद्ध था. गरीबी उसको सहन नहीं हुई. वह अपने मायके में रहने लगी. पुरे धनुकटोली को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा. सबने विदेशी को राजी कर लिया. श्यामसुंदर की दूसरी शादी कर दी गयी. 

श्यामसुंदर की दूसरी घरवाली गम्हरियाबाली गरीब घर की थी. लेकिन वह बहुत ही कर्मठ थी. वह आते ही गाय-भैंस का जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. बाड़ी झाड़ी भी खुद करने लगी. अपने सास ससुर का सेवा भी करती थी. उसके बोटी-बोटी में फुर्ती थी. कुछ ही समय में अपने सास ससुर की चहेती बन गयी थी. लेकिन दिनभर के काम के बाद जब वह शाम को सोने जाती तो उसे श्यामसुंदर की बहुत याद आती. यदि पंजाब ही जाना ही था तो फिर शादी क्यों किया. शाम को सोने से पहले श्यामसुंदर को याद करके वह प्रतिदिन रोती थी. लेकिन सुबह-सुबह फिर से तरोताजा. पुरे धनुकटोली के लोग बोलते, बहु हो तो गम्हरियाबाली जैसा.     

विदेशी मरड़ के जमीन के कोसी में चले जाने के बाद, उसका टाल का ऊँचाई छोटा होता गया. पुआल के टाल के साथ समाज में उसका कद भी लगातार छोटा होता गया. अब विदेशी को कोई नहीं पुछता. किसी पंचायत में उसे बुलाया नहीं जाता. उसके अपने टोले के लोग भी उससे सलाह मशविरा लेना बंद कर दिया था. विदेशी मरड़ अब मरड़ नहीं रहा, लेकिन कुछ बुढ़े-पुराने लोग उसे अभी भी मरड़ कहकर ही बुलाते हैं. उसकी नींद सुबह चार बजे ही खुल जाती है. उसको कोसी में खोया हुआ अपना वैभव याद आने लगता है तो भगवान को याद करते हुए भगैत गाने लगता है. 

विदेशी मरड़ अब कहीं आता जाता नहीं है. अपने दालान पर ही रहता है. दुनिया इधर से उधर हो जाए, लेकिन विदेशी मरड़ का भगैत निर्बाध रुप से चलता रहता है. वह मानता है कि गाँव वाले पर किसी भगवान का श्राप है, जो भजन कीर्तन से ही ठीक हो सकता है. उसकी अन्तरात्मा कहती है कि कोसी महारानी एक न एक दिन अपना हाथ पैर समेटेगी. सबके जमीन को एक एक कर उग्रास कर देगी. गाँव का वैभव फिर से लौटेगा. लोग दिल्ली पंजाब से लौटकर अपने गाँव वापस हो जाएंगे. फिर से विदेशी मरड़ की तूती बोलेगी. विदेशी मरड़ फिर से चालीस बीघे जमीन का जोतेदार हो जाएगा. उसके पुआल का टाल फिर से सबसे ऊँचा होने लगेगा. भगवान चाहेंगे तो कुछ भी असम्भव नहीं. वह भगवान के भक्ति में डूब चुका है. सुबह चार बजे के उस एकांत में सिर्फ भगवान होता है और विदेशी मरड़ होता है. विदेशी मरड़ को अपना खोया वैभव जितना याद आता है वह उतना जोर से भगैत गाता है. 

मिसिरटोली के कुछ लोग बहुत ही चालू है. आपदा में भी अवसर खोज लेते हैं. विदेशी का भगैत उनके लिए अलार्म का काम करता है. उसकी आवाज सुनकर जग जाते हैं और अपने बच्चों को लालटेन जलाकर पढने बैठा देते हैँ. सुबह चार बजा नही, विदेशी मरड़ का भगैत शुरु हुआ, मिसिरटोली में लालटेन जलना शुरु. मिसिर टोले के प्रत्येक परिवार को यह समझ में आ गया है कि भजन कीर्तन से कुछ नहीं होने वाला. कोसी महारानी कभी माफ नहीं कर सकती. खेती लायक जमीन तो गया ही एक दिन यह डीह भी कोसी में समा जाएगा. सिर्फ सरस्वती महारानी ही बचा सकती. जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके विद्यार्जन कर लो. सबका विश्वास है पौ फटने से पहले पढा हुआ चीज कभी नहीं भूलता. मिसिरटोली में प्रायः सभी घरों में सुबह चार बजे लालटेन जल जाता है. उधर धनुकटोली के बच्चे भी भगैत सुनकर उठ जाते है और अपना अपना भैँस को चराने निकल जाते हैं. कई पीढियों से धनुकटोली के लोग मात्र कृषि कार्य में व्यस्त थे. उनमे से अधिकतम को समझ में ही नहीं आया है कि विद्यार्जन भी कृषिकार्य का विकल्प हो सकता है. सचमुच विदेशी मरड़ का भगैत दोनो टोले के लिए अलार्म से कम नहीं था.  

बुढ़े पाकड़ पेड़ के नीचे अभी तक सभी पंच पहुँचे नहीं थे. औपचारिक रुप से पंचायत शुरु नहीं हुआ था. लोग अपना-अपना राय दे रहे थे. महिन्दर कोने में मुँह लटकाए बैठा था. उसको अपनी माँ पर बहुत गुस्सा है. थप्पर खाना तो रोज की बात है, उसकी माँ कैसे डाइन-वाइन को मानती है. वह अपने विद्यालय में आठवीँ कक्षा में फर्स्ट आया है. वह इस बात को इतना तूल में नहीं होने देता. गम्हरियाबाली ने किरिया दी हुई है. उसके साथ निर्जन जगह पर कापी किताब लेकर क्या करता है किसी को नहीं बताना है. अभी तक का पढ़ा हुआ सभी विद्या नाश हो जाएगा. फिर से उसे “अ-आ-इ-ई” से शुरुआत करना होगा. फिर से उसे दुए काम दु, दु दूनी चार उसको अपने पिताजी के चिट्ठी में लिखी बात याद आने लगी. “बेटा, विद्या ही सब कुछ होता है. कोसी में सब जमीन कट गया है. अब इतना भी फसल नहीं होता कि साल भर खा सकेँ, खाने के भी लाले पड़ गए हैँ, अब विद्या ही एक मात्र आशा है. विद्या अर्जित कर लिया तो हाकिम बनकर जीवन भर रसगुल्ला खाओगे, नहीं तो दिल्ली में धक्के खाओगे”. महिन्दर सबकुछ सच सच बता देता. लेकिन सातोँ विद्या का किरिया है. ऊपर से माँ का डाइन वाली बात पर चिढ़ गया है. वह किसी को कुछ नहीं बताएगा. वह चुप रहेगा. 

महिन्दर को मुंह लटकाए एक कोने में बैठा देखकर ठकना महिन्दर के पास आता है और बोलता है, “अबे महिन्दरा, ये किरिया विरिया कुछ नहीं होता, तुम सच बता दो, कापी कलम ले जाकर निर्जन स्थान में गम्हरियाबाली के साथ क्या करते हो?”.

“अबे, चोरी करके मैट्रिक पास करने वाले, तुम क्या जानो विद्या का महत्व. तुम्हारे पास तो विद्या है नहीं. पुछूँ सवाल बता पाओगे? तिब्बत वृष्टिछाया का प्रदेश है कैसे? चक्रवृद्धि ब्याज का सूत्र आता है? संवेग किसे कहते हैं?”

ठकना चुप था. ऐसा नहीं था कि उसे ये सब बिल्कुल नहीं आता था. कुछ कुछ परिभाषा उसे अभी भी आता है. लेकिन उसे डर है कि यदि गलत हुआ तो महिन्दरा उसे छोड़ेगा नहीं पुरे पंचायत में उसकी बेइज्जती होगी. वह चाहता है कि आने वाले दिनों में गाँव में उसकी भी पूछ हो, गाँव के लोग उसे भी पंच की तरह बुलाए और उसका फैसला भी सबलोगों को मंजूर हो. कुछ भी हो महिन्दरा पढ़ने में तो होशियार है. उसे कहीं का नहीं छोड़ेगा. वह चुप रहा और अनदेखा करता रहा. 

महिन्दर भी मौका गँवाना नहीं चाहता. चुप देखकर अंतिम वाक्य बोला, “चोरी से पास करोगे तो ऐसा ही होगा?”

ठकना का ऐसा बेइज्जती कभी भी नहीं हुआ था. चोरी से ही सही, लेकिन मैट्रिक तो पास है. इस पंचायत के बारह आना लोग मैट्रिक पास नहीं है. वह महिन्दरा से अब मुंह नहीं लगाएगा. गाँव के अन्य युवक भी इस घटना को देख रहे थे. महिन्दर को आठवीं कक्षा का सबकुछ रटा रटाया था, वह किसी को भी नहीं छोड़ सकता. किसी और की हिम्मत ही नहीं हुई कि महिन्दर को इस सम्बन्ध में कुछ पुछ सके. 

लोग तो महिन्दर के ज्ञान के आगे नतमस्तक है. लेकिन पंच ? पंच को वह आठवीं के विज्ञान-गणित का सवाल पुछकर चुप नहीं करा सकता. पंच तो पुछेगा कि निर्जन जगह पर गम्हरियाबाली के साथ क्या करने जाता है. पंच तो उससे सबकुछ सच-सच उगलवा लेंगे. महिन्दर को अपने पिताजी की बात फिर से याद आ गया था, “बेटा विद्या ही सब कुछ है. विद्या से ही जीवन चल सकता है”. गम्हरियाबाली ने सातो विद्यानाश होने की कसम दी है. नहीं वह विद्या का नाश होने नहीं देगा. वह अपना मुँह नहीं खोलेगा. वह बता देगा कि वह गम्हरियाबाली को पैसे का हिसाब बता रहा था. वह प्रत्येक महीना निर्जन जगह पर जाता है क्योंकि हरेक महीने पैसे का हिसाब करना होता है.

हालाँकि पंचायत दोनों पक्षों के लिए कष्टकारी होता है. लेकिन गाँव के अन्य लोगों के लिए यह किसी उत्सव से कम नहीं होता. पंचायत में कुछ लोग तीन पक्षों में विभक्त रहते हैं, एक पक्ष वादी के पक्ष में और दुसरा प्रतिवादी के पक्ष मे. लेकिन बहुत सारे ऐसे लोग तटस्थ्य होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के लिए आते हैं. 

कुछ समय के बाद सारे पंच पहुँच गए होते हैं. पाकड़ पेड़ के छाए में सब लोग अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं. ग्राम देवता का यह परिसर के चारों ओर टाट से घिरा हुआ है जो परिसर के बाऊण्ड्ररी का काम करता है. दोनो टोले की महिलाएँ दो खेमा बनाकर टाट के पीछे छुप जातीं हैं. पंचायत में महिलाओं का भाग लेने की परम्परा नहीं हो. लेकिन यदि वादी फरियादी दोनो महिला हो तो वे अपना वक्तव्य हमेशा टाट के पीछे से देतीं हैं. यहाँ तो वादी और फरियादी दोनो महिला है. दोनो अपना अपना समर्थन के लिए अन्य महिलाओं को आमंत्रित कर चुकी हैं.

पंचायत शुरु होता है. गम्हरियाबाली अपने खेमा को विश्वास दिला चुकी है कि वह सिर्फ पैसे का हिसाब लगाने के लिए महिन्दर को निर्जन स्थान में ले जाती है. महिन्दर की माँ दूसरे खेमे को विश्वास दिला चुकी है कि नहीं बात कुछ और है, गम्हरिया में बहुत डाइन है. सबसे बुजुर्ग पंच ने महिन्दर को बुला कर पुछा, “क्यों रे महिन्दरा, निर्जन स्थान पर तुम गम्हरियाबाली के साथ क्या करने जाते हो”. 

इससे पहले की महिन्दर कुछ बोल पाता उस बुजुर्ग पंच को अन्य पंच धोप देते हैं. “देखिए, महिन्दर अभी बच्चा है, मात्र तेरह साल का है. कोर्ट भी बच्चे के साथ सख्ती नहीं करते. सबसे पहले गम्हरियाबाली से पुछते हैं”. 

बुजुर्ग पंच फिर तैयार होता है और पूछता है. “गम्हरिबाली तो विदेशी मरड़ की बहु है, कहाँ है वह.” 

टाट के पीछे बैठी गम्हरियाबाली उठकर खड़ी होती है और घूँघट को कुछ और नीचे करती हुई कहती है, “ मैं हूँ गम्हरियाबाली, पुछिए क्या पुछना है ?“.

“विदेशी मरड़ कहाँ है ?”  

“देखिए मेरे ससुर जी को इसमे मत घसीटिए. पूरे गाँव को पता है कि मेरे ससुरजी अब पंचायत में कहीं नहीं जाते” 

“हाँ, हाँ, ठीक है, तो बताओ महिन्दरा को लेकर तुम निर्जन जगह पर क्यों ले जाती हो”

“देखिए साहेब, हम तो पढे लिखे हैं नही, इनका महीना-महीना मनिआर्डर आता है. हमको बोलते हैं कि किसी से हिसाब करबा लेना. इसीलिए महिन्दरा बौआ से हिसाब करबाने ले जाते हैं.” 

हालाँकि इस गाँव में एक समुदाय का दूसरे समुदाय के जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं होता, लेकिन सभी लोगों का सँबँध परिभाषित होता है. गाँव की बहु चाहे किसी समुदाय की हो वह पूरे गाँव के लिए या तो बहु है, या भौजी है. महिन्दर को अपना देवर मानती है, गम्हरियाबाली. इसी लिए उसे फूर्सत में महिन्दर बौआ कहती है, लेकिन जब मन स्थिर नहीं रहता है या फिर कोई जल्दबाजी रहता है तो उसे महिन्दरा बौआ कहकर बुलाती है. 

सबको मालूम है कि हिसाब किताब वाला मामला नही है. बहरहाल गाँव के इस बुजुर्ग पंच को सच निकलवाना आता है. सैकड़ों पंचायत में वह ऐसा कर चुके हैं. उनको गम्हरियाबाली का कथन तर्कसंगत नहीं लगता है. वह पुनः प्रश्न करते हैं, “यह काम तो तुम अपने दालान पर या फिर महिन्दरा के दालान पर भी कर सकती हो”. 

“वहाँ बहुत सारे बच्चे आ जाते हैं. लोग बहुत सवाल पुछ सकते हैं. उन पैसों का मैं क्या करती हूँ यह सभी लोगों को क्यों बताऊं?”

पंच अभी भी असंतुष्ट है. “देखो यह हमारे ग्राम देवता का स्थान है. इस पेड़ के नीचे कोई झूठ नहीं बोलता. तुम्हारा पति श्यामसुंदर पंजाब गया है कमाने के लिए. झूठ बोलने पर हमारे ग्राम देवता सजा देते हैं. क्या चाहती हो कि श्यामसुंदर पंजाब में ही कुछ हो जाए?” 

इस गाँव के नियम कायदे को गम्हरियाबाली अभी तक सीख ही रही है. पंचों के प्रपंच का उसे कोई अनुभव नहीं है. बात “श्यामसुंदर को कुछ हो जाय”, तक पहुँच सकती है, इसका उसको कोई अंदेशा नहीं था. गम्हरियाबाली घबरा गई. श्यामसुंदर के स्वस्थ्य रहने के लिए वह कितने व्रत त्योहार करती है. ग्रामदेवता के परिसर में वह झूठ नहीं बोलेगी. लेकिन सच कहे भी तो कैसे कहे. वह भी पूरे गाँव के बीच में. सभी बुजूर्गों के समक्ष. 

घूँघट के नीचे से गम्हरियाबाली जोर-जोर से रोने लगती है. ऐसा पंचायत कभी नहीं देखा कि अपराधी अपराध बोध में रोने लगे. बुजूर्ग पंच का दिल पसीझ जाता है. “सच बोल दो, हमलोग कुछ नहीं कहेंगे, कोई सजा नहीं होगी”

यह सुनकर वह और जोर से रोने लगी. उसके साथ घूँघट में बैठी धनुकटोली की कुछ और औरते उसको ढाँढस देने लगती है. “देखो पंच का बात भगवान का बात होता है. इस पेड़ के नीचे कोई झूठ नहीं बोलता. यदि पंच तुमको बोल रहे हैं कि कोई सजा नहीं होगी. तो कोई सजा नहीं होगी.”

गम्हरियाबाली को हिम्मत आती है वह बोलती है, “देखिए साहेब, मैं तो बिल्कुल पढ़ी लिखी नहीं हूँ”. 

“ये बात तुम पहले बोल चुकी हो” 

“इनको साल साल भर हो जाता है, पंजाब से वापस नहीं आते”

“हाँ ! आगे”   

“हमको इनकी बहुत फिकिर होती है. इसीलिए हम महिन्दरा बौआ को लेकर जाते हैं और उनसे चिट्ठी लिखवाते हैं.”  गम्हरियाबाली जब भी दबाव में होती है, वह महिन्दर को महिन्दरा बोल जाती है. 

यह बात सुनते ही दो खेमे में बँटी स्त्री गण में कानाफूसी शुरु हो जाती है पंच लोगों को कुछ समझ में नहीं आता है. 

आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ. धनुकटोली की बहु अपने आदमी को कभी चिट्ठी नहीं लिखी.  दो खेमों में बँटे महिलाओं का तु-तु मैं-मैं शुरु हो जाता है. एक पक्ष गम्हरियाबाली को ठीक ठहराती है, दूसरा पक्ष उसे व्यभिचारी मानती है. पति को चिट्ठी लिखना अनुशासनहीनता के श्रेणी में आता है. गम्हरियाबाली चुप होकर अपना घूँघट और नीचे खींच लेती है. धनुकटोली की महिलाएं महिन्दरा की मां को कोसने लगती है कि खमख्वाह इतना बड़ा पंचायत बैठा दिया. मिसिरटोली की महिला हतप्रभ है कि अब ये दिन आ गया है कि धनुकटोली की बहु अपने पति को चिट्ठी लिखेगी. पंचों के बीच अलग कानाफूसी हो रही है. महिन्दरा कोने में बैठा ठगा हुआ महसूस कर रहा है, जब उसको बता ही देना था तो उसको किरिया क्यों दी. 

महिलाओं के बीच से महिन्दर की माँ उठ बैठती है और बोलती है. “भले ही महिन्दर को चिट्ठी लिखवाने ले जाती है, लेकिन है तो गलत काम. मेरे बेटे को बिगाड़ने के लिए इसको सजा मिलनी ही चाहिए.” 

इससे पहले की पंच जवाब दे. धनुकटोली के खेमे से एक महिला उठती है और बोलती है, “मिसिरटोली की सभी औरतें अपने-अपने मर्द को चिट्ठी लिखती है. क्या उसपर भी पंचायत बैठी है क्या, मिसिरटोली की औरतों को अपने आदमी के बगैर रहा ही नहीं जाता, चिट्ठी पर चिट्ठी लिखती है. तो हमारी बहु पर पंचायत क्यों?”

पंचो को भी मालूम है. ऐसा पहली बार हुआ है कि धनुकटोली की बहु अपने आदमी को चिट्ठी लिखी है. उस बुढ़े पंच को समझ नहीं आता है, कि आखिर वह बोले क्या. किसी भी तरह के किसी फैसले का कोई गुंजाइश बचा ही नहीं रहा. उसे कुछ तो बोलना था वह ज्ञान बाँटने लगता है “यदि औरत पढ़ी लिखी हो तो ऐसी नौबत ही नहीं आए. सभी लोगों को अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहिए”. 

मिसिरटोली की एक बहु अपने खेमे से निकलकर धनुकटोली के खेमे में आती है और गम्हरियाबाली के कान में बोलती है, “सुना है गाँव का डाकिया बहुत ही छिनाल है. गाँव से जाने वाली प्रेम पत्र को काटकर पढ लेता है और पुनः चिपकाकर भेज देता है.” 

गम्हरियाबाली हाजिर जवाबी है, बोलती है हो सकता है दुसरे शहर का डाकिया ही छिनाल हो. किसी ने देखा है अपने गाँव के डाकिया को प्रेमपत्र को फाड़कर पढ़ते हुए. 

इतना तर्क देने के बावजूद भी गम्हरियाबाली के लिए गाँव का डाकिया अब सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. मिसिरटोली की प्रौढ़ महिलाएँ आपस में कानाफूसी कर रही है, “हमारे जमाने में तो पति से साथ फोटो खिंचवाना भी जुर्म समझा जाता था. अब तो धनुकटोली की बहु भी अपने मर्द को चिट्ठी पर चिट्ठी लिख रही है, रहा ही नहीं जाता.” धनुकटोली की महिलाएँ गम्हरियाबाली के साथ है, मिसिरटोली की बहु कर सकती है तो हम लोग क्यों नहीं. महिन्दर अब खुश है कि उसका सातों विद्या नाश नहीं हुआ. ठकना अभी भी महिन्दर से दूरी बनाए हुए है, ना जाने कब कौन सा प्रश्न पुछ दे.  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें