गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

छोटा बाबु

(1)

रेखा स्टेशन पहुँचि गेल छलीह. टिकट काउंटरक दोसर कात अपन घरबलाक मुँह देखि नेने छलीह. दुनु लोकनि मे आंखिए मे शारा भेल. दुनु एक दोसराकें निश्चिंत कऽ चुकल छल जे सब किछु सामान्य अछि. स्टेशनक पछुआर में रेलवे क्वार्टर में रहितो, पहिने रेखा कहियो स्टेशन पर नहि आबैत छलीह.  रेखा केँ आइ मोन भऽ गेलनि जे स्टेशन पर जा केँ कनि कालक लेल बैसल जाए. एक बेर फेर अपन घरबला केँ टिकट खिड़कीक पाछु में व्यस्त देखने छलीह आ नहि जानि कोना ओ सेहो हिनका देखलनि. आँखि सँ कोनो सँवाद नहि भेल छल. मात्र आश्वासन.

कनिए दिनक आओर गप्प थीक. ओकर बाद दुनु बेकति एहि स्टेशन केँ छोड़िके चलि जेतीह, आ तकर बाद फेर सँ एतय एबाक कोनो प्रयोजन नहि. पछिला तीन साल ओ कोन तरहें काटने छलीह से वाएह टा जानैत छथि. सरकारी क्वाटर सँ स्टेशन पहुँचबा मे मात्र दुइ मिनटक समय लागैत छलनि. घरे पर बैसि ओ की की कऽ सकैत छलीह. बहुत सँ बहुत टी.वी. आन कऽ केँ ओ कोनो सिरीयलक रीपीट टेलीकास्ट देखि सकैत छलीह. टीवीयो देखबा मे आब कोनो मोन नहि लागैत छलनि. जल्दी सँ एहि नरक सँ छुटकारा भेटनि तऽ जा केँ गंगा नहा लेतीह.

भारत देशक बिहार राज्य में सुपौल जिला में छोटका सन गाम में अँग्रेज जमानाक एकटा  छोटका सन स्टेशन, भपटियाही बाजार मे सरायगढ़ रेलवे स्टेशन. बहुत दिन पहिने सरकार सरायगढ नामक गाम कें प्रसन्न करबाक लेल भपटियाही बाजार मे सरायगढ नामक स्टेशन खोलि देने छल. भपटियाहीवला लोक एहि लेल प्रसन्न जे ओतय एकटा रेलवे स्टेशन अछि आ सरायगढ वला लोक एहि लेल जे एहि गामक नाम रेलवे नक्शा पर अछि. प्रजातंत्र जे ने कराबय. दिन भरि में एहि स्टेशन पर एक दिस सँ मात्र तीन टा ट्रेन आबैत छल, तेँ कुल मिला केँ दिन भरि मे मात्र छओ टा ट्रेनक आवाजाही छल.

स्टेशन ओहि लगपासक सब सँ सुन्दर स्थान छल. रेखा केँ दूरहि सँ स्टेशनक बाउन्ड्रीक कतार मे गुलमोहरक गाछ सब देखा पड़लनि. आधा किलोमीटरक प्लेटफार्मक कात में बाउंड्री सँ लागल लाल लाल फूल सँ आच्छादित पचासो टा गुलमोहरक गाछ. आ गाछक नीचा में दुबिक मैदान.  अपेक्षाकृत वीरान स्टेशन केँ आवश्यकता सँ बेसी मनोरम बना रहल छल. साँझ होमय वाला छल आ दोसर चिड़ै चुनमुनी जे ओहि सबटा गुलमोहरक गाछ मे अपन खोता लगने छल अपन अपन खोता मे वापस आबि रहल छल. चिड़ै चुनमुनीक कोलाहल सँ लागि रहल छल जे ओ अपन-अपन खोता केँ बिसरि गेल अछि आ 'ई हमर' तऽ 'ओ हमर' कहबाक क्रम मे वाद विवाद कऽ रहल अछि. बीच बीच मे कोयलीक कूक बाँकी कोलाहल केँ दबा दैत छल. लगभग तीस फीट चाकर प्लेटफार्मक आधा भाग सीमेन्टक आ दोसर आधा दस फीट हरियर हरियर दुबि सँ भरल छल. दुबि वाला भाग मे ठामे ठाम लकड़ीक बेन्च छल. ट्रेन एबा मे एखन एक घँटा छल आ सबटा बेन्च वीरान छल. मुख्य स्टेशन परिसरक लऽग मे एकटा चाहक आ दू टा पानक दोकान छल. चाहक दोकानदार अपन कोयला वाला चुल्हा केँ दोकानक आगू मे राखि आगि पजारि रहल छल. एहि सँ निकलल धुआँ स्टेशन परिसरक प्राकृतिक सुन्दरताक लेल उपयुक्त नहि छल. मुदा एक छोर पर ठाढ़ भेल रेखाक दृष्टिपात प्लेटफार्म पर भेलनि. आधा किलोमीटरक दुबिक मैदान आ कतार में लागल गुलमोहरक छटा देखि हुनका मुँह सँ हठाते निकलल छलनि - 'विहंगम'. बिदाइकाल मे सबकिछु बेसीए नीक लागय लागैत छैक. रेखा बी.. पास केने रहथि आ साहित्य मे आनर्स. साहित्य आ कलाक प्रेमी रहैथ. अनमन्य्स्क रुप सँ मोन मे आएल 'विहंगम' शब्द हुनकर साहित्य प्रेम केँ उजागर करैत छलनि. साहित्य प्रेमी केँ प्राकृतिक सुन्दरता सँ बेसी आओर की चाही?

प्लेटफार्म पार कऽ केँ ओ प्रतीक्षा कक्ष गेलीह. ओतय मात्र तीन टा यात्री बाट ताकि रहल छल. दोसर दिस टिकट काउन्टर छल जाहि पर लिखल छल, "यह खिड़की ट्रेन आने के एक घँटा पहले खुलती है और पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". बहुतकाल धरि ओ सोचैत रहली जे ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने टिकट खिड़की किएक बन्द भऽ जाएत छैक. पुनः मोन पड़लनि जे स्टेशन पर मात्र चारि टा कर्मचारी नियमित रुप सँ कार्य करैत छैक. स्टेशन मास्टर यानी बड़ा बाबु जक्शन पर रहैत छथि आ सप्ताह मे मात्र दुइ दिनक लेल एहि स्टेशन पर आबैत छथि. रेखाक घरबला रमेश असिस्टेन्ट स्टेशन मास्टरक (मतलब छोटा बाबु) पद पर तैनात छलाह. ओ नियमित रुप सँ क्न्ट्रोल रुम, बुकिन्ग काउन्टर, आ सिगनलक जिम्मेदारी सम्हारैत रहैत छलाह. आ बाँकी एकटा खलासी आ एकटा चपरासी. छोटा बाबुक जिम्मेदारी बहुते महत्वपूर्ण छल. दोसर कर्मचारी नहि रहबाक कारणें ट्रेन एबा सँ पाँच मिनट पहिने खिड़की बन्द कऽ के ओ सिगनल डाउन करबाक लेल चलि जाएत छलाह.

काल्हिए रेखाकेँ रमेश कहने छलाह: "देखु अहाँ असगरे रहैत छी. स्टेशन सेहो खालीए रहैत छैक. भोर साँझ कें अहाँ स्टेशने चलि आउ. कतेक मनोरम स्थान छैक. कतेक चहल पहल रहैत छैक".

"हँ हमहुं सोचैत छी स्टेशने चलि आएब. आब दिने कतेक बचल छैक.'

दुनु लोकनि बहुत किछु बाजए चाहैत छल. मुदा ओ सब गप्प नहि बाजि सकल. किछु शब्द कहिके खानापूर्ती कऽ देने छल. आइ काल्हि रमेश आ रेखा एक दोसराक कोनो गप्प केँ नहि काटैत छल. रमेश एहि लेल नहि जे ओ देखाबय चाहैत छलाह जे ओ रेखाक कोनो गप्प नहि काटैत छथि. रेखा एहि लेल नहि किएक त' रमेश अपन इच्छाक विरुद्ध रेखाक सब गप्प मानि चुकल छलाह.

ठीके ओ स्थान बहुते मनोरम छल. भोर आ सांझ केँ प्राकृतिक सुन्दरता कनि आओर बेसी बढ़ि जाएत छल. नहियों जानि बुझि के, मुदा दिमागक एकटा कोनटी मे हुनका ई गप्प बैसल छलनि जे स्टेशन सन दिब्य स्थान पूरे इलाका मे कतओ नहि अछि.

किछुए काल मे लोकऽ क आवाजाही बढ़ि गेल. आब टिकट काउन्टरक व्यस्तता सेहो बढि गेल छल. वेटिँग रुमक एक छोर सँ रेखा केँ खिड़कीक दोसर कात अपन पतिक व्यस्त मुँह देखा पड़ि रहल छलनि. रेखा वेटिँग रुमक सार्वजनिक बेन्च पर बैसि अपन अतीतक बारे मे सोचय लागलीह.

(2)

रेखा एकटा मध्यमवर्गीय मुदा प्रगतिशील परिवारक बेटी छलीह. हुनकर बाबुजी एक साधारण किरानीक नौकरी सँ अपन मेहनत आ अपन मेधाक बुता सँ आई केन्द्रीय सँस्थान मे आफिसर पद पर तैनात छलाह. बहुत कमे होइत छैक जे परिवारिक जीवन यापन करैत लोक अपन पढ़ाइ लिखाइ आगु नियमित राखैत छैक. मुदा ओ डीग्री लैत गेलाह आ आई किरानी सँ आफिसर बनि गेलाह. दुइ टा बेटी छलनि आ एकटा बेटा. अपने गामक सरकारी स्कूल मे पढ़ने छलाह मुदा धिया पुता केँ कोनवेन्ट स्कूल मे अन्ग्रेजी माध्यम सँ पढेने छलाह. बेटी सब बेटा सँ बेसीए तेज छलनि.

समय बीतला पर जखन रेखा ग्रैजुएशन कऽ लेलीह तऽ हुनका रेखाक विवाहक चिन्ता हुअए लागलनि. रेखा सुन्दर, सुशील, गृह कार्य मे दक्ष, आ कान्वेन्ट एजुकेटेड छलीह. आधुनिक समाज मे एक योग्य कन्याक सबटा गुण नेने. रेखा अपन विवाहक पुरा जिम्मेदारी अपन बाबुजी पर सौँपि देने छलीह. हुनका विश्वाश छलनि जे ओ जे करताह से नीके.


रेखा केँ अपन बाबुजीक केवल एकेटा चीज पसन्द नहि छलनि. हुनकर बाबुजी चहैत छलथिन जे वर सरकारी नौकरी करए वाला होमय. रेखाक मोन छलनि जे लड़का प्राइवेट नौकरी करए वाला आ मेट्रोपोलिटन सिटी मे स्थापित होएबाक चाही. जतय हुनकर बाबुजी सरकारी नौकरी केँ स्थायी, पेन्शन देमए वाला, मेडिकल आ अन्य अनगिनत सुविधा देबय वाला नौकरी बुझैत छलाह, ओतय प्राइवेट नौकरी केँ अस्थायी मानैत छलाह, जेना बनियाँक दोकान पर काज करय वला लोकक होइत छैक. ओ काएक लोकक बारे में सुनने छलाह जे प्राइवेट में कखनहुँ नौकरी सँ निकालि दैत छैक. सरकारी नौकरी प्रतिष्ठित आ प्राइवेट अप्रतिष्ठित.

ई कथा हम 2011 मे लिखने छलहुँ. ताबय सरायगढ छोटी लाइन होइत छल. हमर गाम मे पढल लिखल लोक सरायगढक छोटाबाबुक चर्चा करैत रहैत छल. जहिया कहियो ट्रेन पकड़बाक लेल जाएत छलहुँ छोटाबाबुक प्रतिष्ठा हमरा बड्ड प्रभावित करैत छल. ताहि लेल इ कथा लिखलहुँ. इ कथा कालक्रम मे 2012 मे अंतिका मे सेहो प्रकाशित भेल छल. मुदा कोनो पोथी मे नहि छपल अछि. 

आशा अछि पाठक केँ नीक लागतनि. जे साहित्य सँ नहि जुड़ल छथि आ मैथिली नहि पढने छथि हुनका लेल मैथिली लिखब बेस कठिन. हम मैथिली सीखनाय 28 वर्षक उम्र मे कयलहुँ. भाषाक दृष्टिएँ गलती अवश्यसम्भावी अछि. सुधि पाठम लोकनि एहेन गलतीक दिस हमर ध्यान आकर्षित कराबथि.   

एक दिन रेखा आ हुनकर बाबुजी मे सरकारी आ प्राईवेट नौकरी मुद्दा पर बहस भऽ गेल छलनि.

रेखा बाजली, "प्राइवेट नौकरी मेहनत करए वालाक लेल अछि, सरकारी नौकरी कामचोरक लेल. प्राइवेट नौकरी मेधावी लोक के दिन दुना राति चौगूना हिसाब सँ आगू बढ़बैत छैक. अन्त मे प्राईवेट कम्पनी मे काज करए वाला लोक स्मार्ट आ सरकारी नौकरी करए वाला अनस्मार्ट होइत छैक".

"सरकारी नौकरी बिना सँघर्ष केने नहि भेटैत छैक. बहुत मेहनत आ लगन चाही. जे लोक मेहनत नहि करय चाहैत छथि ओ प्राइवेट दिस चलि जैत छथि. तेँ असल कामचोर तऽ प्राइवेटे वाला होइत छैक."

"सरकारी नौकरी करए वाला एगारह बजे आफिस आबैत छैक, ठीक पाँच बजे फेर वापस. भगवान मनुष्य केँ काज करबाक लेल बनौने छैक. काज करबाक मतलब होइत छैक चलैत रहब. रुकि गेनाइ मृत्युक प्रतीक थीक. नीको लोक सरकारी नौकरी मे एलाक बाद ओहने भऽ जाइत छैक. एहेन लोक आलसी आ समाज आ देशक प्रगति मे बाधक होइत छैक. आ एखन धरि हम सरकारी नौकरी मे अनैतिक काज भ्रष्टाचारक गप्प नहि केने छलहुँ"

रेखाक बाबुजी अवाक रहि गेल छलाह. निश्चिंत भेलाक बाद रेखा केँ अवज्ञान भेलनि. बाबुजी ठीके त' कहैत छथि. सरकारी नौकरी मे कोनो रिस्क नहि. 

दुनु लोकनि अपन अपन ठाम नीक. आम आ लताम मे कोन नीक आ कोन खराप से व्यक्ति विशेष पर निर्भर करैत छैक. आमक अपन महत्व मुदा एकर मतलब कथमपि नहि जे लताम खराप फल भेल. दोसर गप्प जे रेखाक बाबुजी, "रेखाक गप्प" सँ सहमत छलाह. मुदा समाजे एहेन छल जे सरकारी नौकरी केँ बेसी महत्व दैत छल. रेखाक गप्प हुनका नीक लागनि मुदा ओ कहियो मोन नहि बना सकलाह जे रेखाक विवाह एक प्राईवेट नौकरी करए वाला व्यक्ति सँ कऽ देल जाए.

रेखा पढ़ल लिखल आधुनिक कन्या छलीह. ओ एहेन समाज मे रहैत छलीह जतय लड़कीक जीवनसंगी सदति हुनकर माए-बापक पसन्द सँ होइत छलैक. ओ अपन बाबुजी कें आदर्श मानैत छलीह आ हुनका सँ बहुत प्रेम करैत छलीह. प्रेम अनुशासनक नाम थीक, प्रेम कर्तव्यबोधक नाम थीक, प्रेम मजबूरीक नाम थीक. ओ अपन बाबुजी सँ एतेक प्रेम करैत छलीह जे अपन जीवन सँगी केहेन हो तकर फैसला अपना पर नहि मुदा अपन बाबुजी पर छोड़ि देने छलीह.

किछु समयक बाद रेखाक विवाह हाजीपूर मे पदस्थापित, एम.एस.सी. फर्स्ट क्लास मे पास, रेलवे मे असिस्टेन्ट स्टेशनमास्टर पद पर कार्यरत रमेश सँ भऽ गेलनि.

विवाहोपरान्त, रमेशक क्वालिफिकेशन हुनका नीक लागलनि. व्यक्त्वि सँ प्रभावित से छलीह. सब किछु नीक लागलनि, मुदा एकटा गप्प हरदम खटकैत रहलनि. हुनका सरकारी नौकरी पसन्द नहि छलनि. दोसर गप्प जे रमेशक मेधावी कैरियर देखि, आ मेहनत करबाक ऊहि देखि, आ हुनकर ऊर्जा देखि रेखा केँ होइत छलनि जे यदि ओ कोनो बहुर्राष्ट्रीय कम्पनी मे नौकरी करतथि तऽ हुनकर तरक्की खुब भेल रहतनि. कोनो भाजें मोन मारि केँ ओ जीवन यापन करैत छलीह.

हाजीपुर में कोनो धरानी काज चलैत छल. पटनाक लग में छल कखनहुँ उठि पुठि के पटना चलि जाएत छलीह. मुदा रेखाक जीवन मे पहाड़ टुटि केँ खसलनि जखन रमेशक ट्रांसफर सुपौल सन पिछड़ल जिलाक एकटा छोट सन स्टेशन सरायगढ़ मे भऽ गेलनि. सरायगढ़ मे आओर किछु नहि छल. मात्र एकटा स्टेशन जतय लग पासक दसो टा गामक लोक ट्रेन पकड़ाए आबैत छल. स्टेशनक अतिरिक्त ओतय एकटा बाजार छल, मात्र ओतबी. ओहि स्टेशन पर चारि टा कर्मचारी स्थाई रुप सँ कार्य करैत छल. चारु गोटेक लेल सरकारी क्वार्टर बनल छल. हाजीपुर तैयो बहुत नीक छल. मुदा सरयगढ मे "छोटा बाबुक" पद हुनकर कोनो दुखःद स्वपनो मे नहि आयल छलनि.

सरायगढ आ भपटियाही दुइ टा अलग अलग गाम छल. दुनु गामक अलग पँचायत छल, अलग मुखिया आ अलगे व्यवस्था. मुदा दुनु गाममे एकेटा रेलवे स्टेशन-- भपटियाही गाम मे सरायगढ नामक स्टेशन. दुनु गाम मे मिडिल स्कूल केँ छोड़ि बाँकी कोनो सरकारी आफिस नहि छल. तेँ एहि स्टेशनक छोटाबाबुक समाजिक जीवन मे बहुत उच्च स्थान रहैत छल. रमेश जहिना ट्रांसफर भऽ के एहि स्टेशन पर एलाह दुनु गाम मे समाचार पसरि गेल. मिथिला मे शिक्षाक अनन्य महत्व होइत छैक. रमेशक नामक संग इहो गप्प पसरि गेल जे एहि बेरक छोटाबाबु सबसँ बेसी पढल लिखल लोक छथि. एम.एस.सी मे फर्स्ट क्लास फर्स्ट.  दुनु गाम मे हुनका सँ बेसी किओ पढ़ल लिखल नहि. कोनो भी लोकक तीन दृष्टि सँ सम्मान भेटैत छैक. पहिल जे ओ लोक केहेन छथि? हुनकर व्यक्तित्व केहेन छनि? दोसर ओ कतेक पढ़ल लिखल व्यक्ति छथि? तेसर जे ओ कोन पद पर काज करैत छथि? दुनु गाममे रमेश सँ बेसी नहि तऽ किओ पढ़ले लिखल छल, नहिए हुनका सन किनको व्यक्तित्वे छलनि आ दुनु गामक एक मात्र सरकारी आफिस (रेलवे स्टेशन) मे ओ सर्वोच्च पद पर कार्य कऽ रहल छलाह. तेँ दुनु गामक लोक हुनका आगु मे नतमस्तक रहैत छलाह.

रमेश ओतय सरियाए केँ व्यवस्थितो  नहि भेल छलाह कि दुनु गामक मुहपुरुखक आवाजाही शुरु भऽ  गेल. भरि दिन मे मात्र छओ टा ट्रेन ओहि बाटे आबैत जाइत छल. ओकर बाद रमेश खालीए बैसल रहैत छलाह. हुनकर आफिस मे किओ ने किओ कोनो लाथे बैसले रहैत छल. रमेशक व्यक्तित्वो तेहने छल. एहि सँ पहिलुका जे छोटा बाबु सब एतय छलथि से किओ गामक लोक सबकेँ मोजर नहि दैत छलाह. रमेश समाजिक व्यक्ति छलाह. सबसँ मिलाकेँ रहय वला लोक.

दुनु गामक लोक सब मे प्रतिस्पर्धा लागल छल जे के कतेक काल धरि छोटा बाबु लगमे बैसैत छथि. छोटा बाबु किनकर गप्प बेसी सुनैत छथि. छोटा बाबु लग मे जिनकर जतेक बेसी उठा-बैसी हुनकर ओतेक बेसी महत्व. गाम मे कोनो भोजक आयोजन हो, रमेश केँ पहिल निमन्त्रण पड़ैत रहनि. भगवानोक पूजाक मुख्य अतिथि वाएह रहैत छलाह. गाम घर मे कोनो परिवारिक झगड़ा भऽ गेल हो तऽ रमेशक फैसला सर्वमान्य रहैत छल. किनको अपन धिया-पुताक कैरियर सम्बन्धी सलाह मशविराक लेबाक हो रमेश लऽग लोक हाजिर भऽ जाएत छलनि.

रमेश एत्तेक सम्मानक उम्मीद नहि करैत छलाह. रमेश केँ बुझए मे देरी नहि लागलनि जे हुनका जे गामक लोक सब सम्मान दैत छलनि ओ प्राकृतिक रुप सँ देल गेल सम्मान छल. गामक लोक केँ रमेश सँ किछु अपेक्षा नहि छलनि. रमेश पढल लिखल छथि, बुझनुक छथि, मिलनसार छथि तेँ गामक लोक सम्मान दैत छनि. इर्ष्या इर्ष्या केँ जन्म दैत छैक, द्वेष सँ द्वेष बढ़ैत छैक, आ एक प्रेम, दोसर प्रेम उपजैत छैक. गामक लोक सँ भेटल प्रेम सँ रमेश भाव विह्वल भऽ जाइत छलाह. ओ वाएह उत्साह सँ प्रतिउत्तर सेहो दैत छलाह.

एहि दुनु गाम मे काएक टा टोल छल. पंचा चर्मकार टोलक सर्वमान्य नेता छल. पंचा के लागैत छलैक जे रमेश हुनके कहब मे छथि. ब्रह्मदेव चौधरी टोलक मरड़ छल हुनका अलगे लागैत छलैक जे रमेश हुनकर कोनो गप्प नहि काटि सकैत छथि. बभनटोलीक प्रत्येक लोक कें रमेश अपने बुझाएत छलनि. यादवजी केँ रमेश मना केने रहैथ जे चुनावक कोनो कार्यक्रम मे ओ भाग नहि लेताह, तैयो किछु मरड़ लोकनि हुनके लग आबैत जाएत रहैत छल. रमेशक डर सँ कोनो किशोर स्टेशन परिसर मे बौआएत नहि छल. पहिने स्टेशन परिसर सिगरेट बीड़ी पीबाक लेल छौड़ा सबहक अड्डा रहैत छल. रमेश सबहक चलान काटि कोनो अपराधी तत्व के आबए नहि दैत छल. बाँकि विद्यार्थी सबके डर लागैत छलैक जे रमेश कोनो प्रश्न नहि पुछय दैन तेँ ओ लोक मात्र यात्राक लेल स्टेशन आबैत छल. स्टेशन परिसरक टिनहा हीरो सब चाहक दोकान मे आगि तापैत रहैत छल मुदा रमेश हुनका लोकनिक कोनो मोजरे नहि दैत छलाह.

मात्र छओ महीना मे रमेश दुनु गामक किछु परिवारक अभिन्न अंग बनि गेल छलाह. कखनो कखनो सोचैत छलाह जे लोक पाइ किएक कमाबैत छैक? अपन आ अपन परिवारक लालन पालन लेल, अपन मोनक सँतुष्टिक लेल. एहि सरकारी नौकरी मे हुनका एत्तेक दरमाहा भेट जाएत छलनि जाहि सँ ओ अपन परिवारक जिम्मेदारी आ अपन भविष्य केँ सुरक्षित कऽ सकैत छलाह. सरायगढ़ मे खर्चे की होएत छैक. खेबा पीबाक बाद मे सबटा पैसा बचिए जाएत छैक. तरकारी तीमन तऽ गामक लोक एत्तेक दऽ दैत छलनि जे आई धरि कहियो कीनबाक काजे नहि पड़लनि. दुध दही एत्तेक सस्ता आ शुद्ध. एक लोकक काज पड़ला पर दस लोक बिना कहने हाजिर भऽ जाएत छलनि. मात्र छओ टा ट्रेनक देखभाल करबाक छलनि. गामक लोक केँ मात्र बेरुपहरक समय देने रहथि. बाँकि समय हुनकर समय किताब पढबा मे व्यतीत होइत छलनि. शुद्ध हवा, शुद्ध भोजन, आ शुद्ध समाजिक सम्मानक सँ मोन अघाइत नहि छलनि. होइत छलनि जे ओ धन्य छथि जे हुनकर ट्रान्सफर एहि गामक रेलवे स्टेशन पर भऽ गेलनि.

(3)

मुदा रेखाक अलगे स्थिति छलनि. स्टेशनक पछुआर मे अंग्रेजेक समय मे बनल रेलवे क्वार्टर छल. एहि ठाम एतेक वर्षा होइत छल जे क्वार्टरक देबाल पर कजरी लागि गेल छल. बाँकि शहर जकाँ एतय प्रत्येक वर्ष पेंटिंग नहि होइत छैक. रेलवे मे किओ अपना हिसाब सँ पेंटिंग नहि कऽ  सकैत छैक. ओहि मे ललका सरकारी रंग लागैत छैक. देबाल पर दुबि आ पीपर जनमि गेल छल. लोकक मददि सँ ओकरा साफ काएल गेल. घरक भीतर सेहो नीक सँ साफ सफाइ कऽ देल गेल. एतेक टाक घर मे ओ असगरे रहैत छलीह. पहिल छओ महीना ओतुका परिस्थिति बुझबा मे बीति गेलनि. ओकर बाद जे बुझा पड़लनि से कोनो दु:ख स्वप्न सँ कम नहि. साँझ पड़िते बेंग आ झिंगुरक आवाज शुरु भऽ जाएत छल. कोनो एहेन दिन नहि जहिया ओ साँप नहि देखैत छलीह. रेखा केँ लागैत छलनि जे एहि गामक लोक मच्छर केँ पोसने अछि. आब हुनका इएह कजरी लागल देबार वला घर मे रहय पड़तनि, असगरे. रमेशक गप्प अलग, ओ स्टेशन पर लोक सबहक बीच मे रहैत छथि.

रमेशक ट्रांसफर होयबाक काल मे रेखा नव नवविवाहिता छलीह. नवविवाहिता युगलक एकटा अघोषित नियम रहैत छैक-- दुनु मे सँ किओ दोसराक गप्प नहि काटैत छैक. रेखा केँ रमेश संगे हुनका बहस करबा मे नीक नहि लागैत छलनि. मुदा जतेक समय बीतल जाएत छल रेखा कोनो ने कोनो भाँजे रमेश केँ अपन गप्प कहैत गेलीह. ओ सरायगढ मे नहि रहय चाहैत छलीह. रमेश हुनका परतारबाक भरिसक प्रयास करैत छलाह.

सरकारी नियम छैक. तीन साल सँ पहिने ट्रांसफर सम्भव नहि छल. रमेश सेहो लाचार छलाह. कोनो उपाय नहि छलनि. मुदा जखन रेखा अपन सँगी सहेली सबहक बारे मे सोचैत छलीह तऽ बड्ड कष्ट होइत छलनि. कहियो कहियो हुनका लोकनिक फोन आबैत छलनि. बंगलोर आ पुणेक गप्प सुनि केँ ओ हतोत्साहित भऽ जाएत छलीह. ओ सोचैत छलीह जे हुनकर उम्रे कतेक भेल छनि. पचीस वर्ष मे तीन महिना कमे. ओ सोचैत छलीह जे ई इएह उम्र थीक जाहि मे लोक शापिँग माल घुमैए, जाहि मे लोक मल्टिप्लेक्स मे सिनेमा देखैए’, साँझ मे हाथ मे हाथ दऽ सड़क पर घुमैए, रेस्टौरेन्ट मे खाना खाएत अछि. कोनो काफीक दोकान पर बैसि, एक कॉफी केँ डेढ़ घँटा मे पीबैत अछि. किछु सँगी सहेली घरबला संगे बोस्टन आ लंदन घुमैत छनि. रेखाकें अपन बाबुजी सँ काएल गेल गप्प याद आबए लागलनि. मात्र सरकारी नौकरीक आस मे हुनका नर्क मे ढकेलि देल गेल रहनि. सरायगढ नर्क नहि थीक तखन आओर की?

इम्हर गामक लोक रेखाकेँ सेहो अपना सँ जोड़बाक प्रयत्न करय लागल छल. गामक बुढही सब रेखा लग बुलय आबय लागलनि. अवरजात बढल, तखन लोक अपन समस्या कहय लागलनि, लोक सलाह मांगय आबय लागलनि. जनानीक कार्यक्रम मे घोषित आ अघोषित रुपें मुख्य अतिथि इएह रहथि.  जाहि उम्र मे नवविवाहित युगलक उत्साह चरमोत्कर्ष पर रहैत छैक ओहि उम्र मे रेखा गामक झगड़ाक निपटारा कोनो मैँयाँ जकाँ करैत रहथि. ओ अपना आप केँ जहिया कहियो अपन सखी-सहेली लोकनि सँ तुलना करैत छलथिन मोन अवसादित भऽ जाएत छलनि.

रमेश केँ देखबा मे आएल जे सदिखन उत्साहित रहय वाली रेखा क्रमशः उदास रहय लागलीह. रेखा बुझि रहल छलीह. एतय सँ ट्रांसफर भेनाय आसान गप्प नहि. तैयो रेखा रमेश के कहने छलीह, "देखु एहि सरायगढ मे हम जीवन नहि काटि सकैत छी. अहाँ त दस लोकक बीच मे स्टेशन पर रहैत छी. हमरा लेल ई सरकारी क्वार्टर काटैत रहैत अछि. ओहुपर गामक जाहिल गंवार स्त्रीगण सब हमरा घेरने रहैत छथि."

"देखु रेखा एखन सालो नहि लागल अछि. हम ट्रांसफर लेल आवेदनो नहि द' सकैत छी. आ कतेक नीक गप्प गामक स्त्रीगण सब अहाँ के एतेक सम्मान दैत छथि."

"नहि चाही हमरा ओ सम्मान. मूर्ख स्त्रीगणक सम्मान कोन काजक"

"ओ सब मूर्ख स्त्रीगण नहि छथि, रेखा. भने ओ पढल लिखल नहि होइथि मुदा ओ मुर्ख नहि छथि."

ओहि शुद्ध स्वस्थ्य हवा पानि मे रेखाक स्वास्थ्य नीके भऽ  गेल रहनि मुदा रेखाकेँ ओतय कनियो मोन नहि लागैत रहनि. पहिने रमेश केँ भोर साँझ अपन समस्या कहैत छलीह. रमेश केँ बुझल छलनि जे हुनका लग समस्याक कोनो समाधान नहि छनि. ओ रेखाकेँ बुझेबाक प्रयत्न करैत छलाह. पहिने बहस हुअए लागल ओकर बाद झगड़ा. रेखा प्रत्येक चीज मे उलहन दैत छलीह. रमेश सरायगढ़क प्रत्येक चीज मे विशेषता बुझबैत छलाह.

रेखा बजने छलीह, "हम सपनो मे नहि सोचि सकैत छलहुँ जे अंग्रेजक बनाएल घर मे रहब".

"साएह देखियो ने, अंग्रेजक बनाएल घर कतेक मजगूत छैक, कतेक हवादार!"

"एहेन घर अहीँके मुबारक हुअए. हमर त दिने नहि कटैत अछि".

"देखु रेखा, चारि पाँच साल बाद अपने ट्रांसफर भऽ  जाएत, ताबय एतुका प्रदुषण मुक्त वातावरण, शुद्ध तरकारी, साग, तीमन आ निश्छल लोकक आनंद लिअ. महानगर मे किओ ककरो पुछए नहि जाएत छैक?"

"बाप रे पाँच साल रहय पड़तैक. हम नहि रहि सकब. हमरा नैहर पठा दिअ".

रमेश अनठा देने छलाह. लड़ाइ कऽ  के कनियाँ के कतओ नैहर पठाओल जाए? मुदा प्रत्येक दिन कोनो ने कोनो भांजे बहस शुरु होइत छलनि आ अंतिम शब्द रेखेक रहैत छलनि, "हम नहि रहि सकब एतय. हमरा नैहर पठा दिअ".    

किछु दिनक बाद रमेश रेखा केँ नैहर पहुँचा देलाह. विवाहित जीवन मे नैहर सासुर लागले रहैत छैक. मुदा रेखा झगड़ा कऽ  के गेल छलीह. सम्भवतः ओ नैहरे मे रहय चाहैत छलीह. मुदा बिहायल बेटी बापक घर मे कतेक दिन रहतीह लोक सब प्रश्न पुछय लागनि. रेखा छओ महीना मे वापस भऽ गेलीह.

एहि छओ महीना मे रमेश आओर बेसी समाजिक भऽ गेल छलाह. पछिला छओ महीना मे साइते एको दिन हेतय जाहि मे हिनकर चुल्हा पजरल होनि. किओ ने किओ निमंत्रण द' दैत छलनि. वापस एलाक बाद रेखा देखलीह जे रमेश आओर बेसी व्यस्त भऽ  गेल छथि. आब लोक सब क्वार्टर पर सेहो आबि जाएत छलनि-- झगड़ा निपटारा आ कैरियर सम्बंधी सलाह लेल.

रमेश गामक लोक सबसँ बहुत मेलजोल राखने रहथि मुदा रेखा सँ दूरी बनल रहलनि. किछु समय अओर बीतल. आ ओहि हिसाब सँ रेखाक उदासी सेहो बढैत गेलनि. आब ओ नैहर जेबाक धमकी सेहो नहि दैत छलीह. कतेक दिन रहतीह. कतेक लोकक प्रश्नक उत्तर देतीह. रेखा केँ कोनो चारा नहि रहनि. ओ गुमसुम रहय लागलीह. रमेश केँ गामक लोक सँ बहुत प्रेम भेटैत गेलनि. मुदा जाहि प्रेमक आशा नहि अपितु आवश्यकता रहनि ओ प्रेम दिनानुदिन कम होइत गेलनि. आब तीन साल भऽ  गेल. जखन बांकि कोनो समाधान नहि भेटलनि तऽ ओ एक दिन रेखा केँ आश्वासन देलथिन जे ट्रान्सफर करबाक लेल यथासम्भव प्रयास करताह.

सरायग़ढ मे किओ आबए नहि चाहैत छल. लोक घूस दऽ के एतुका ट्रांसफर रुकबा लैत छल. तेँ एतय सँ दोसर कोनो शहर मे ट्रांसफर बहुत दिक्कत छल. रमेश अपन कनियाँक स्वास्थक बहाना बनाए आवेदन देलनि. भ्रष्टाचारक धुरविरोधी हजारो टाका खर्चा कऽ के जिलाक मेडिकल आफिसर सँ लिखबा केँ आनि लेलनि जे हुनकर कनियाँ भयंकर रुपें अस्वस्थ छथि. ओकर आगु आओर बेसी टाका खर्चा भेलनि. कतेको भाग-दौड़क बाद रमेशक ट्रान्सफरक आर्डर आबि गेलनि. हुनकर नव पोस्टिँग कलकत्ता मे भेलनि. रेखाक हेराएल खुशी पुनः वापस आबि गेलनि. रेखा के भेलनि जे नहि बँगलोर आ पुणे तऽ कम सँ कम कलकत्ता तऽ एहि सरायगढ सँ नीके होयत. कलकत्ताक नाम तऽ महानगरे मे आबैत छैक. बल्कि किछु प्रसँग मे कलकत्ता बँगलोर सँ नीके. जतय महानगरक प्रत्येक अवयव कलकत्ता मे उपस्थित छैक ओ बँगलोर सन महग नहि छैक. वाएह शॉपिँग माल, वाएह मल्टिप्लेक्स, मेट्रो ट्रेन, विक्टोरिया पैलेस, एसप्लैनेडक मारकेट आ चौबीस घंटा चहल पहल. ट्रान्सफरक आर्डर सुनि हुनकर मोन रोमान्चित भऽ गेलनि.

रेखा आब सामन्य रहय लागलीह. रमेशक देख-भाल नीक सँ करय लागलीह. हुनका कखनहुँ कखनहुँ मोन मे कचोटो होएत छलनि जे हुनके खातिर रमेश केँ एतेक फेरा लागि गेल छनि. नहि तऽ ओ कतेक बढ़ियाँ सँ एडजस्ट भऽ गेल छलथि. एतेक स्वच्छ हवा, स्वच्छ वातावरण, शुद्ध तरकारी तीमन. मोने मोन ओ रमेश केँ आओर बेसी प्रेम करए लागलीह. रमेशक कोनो गप्प काटैक हुनका हिम्मत नहि होएत छलनि.

एहि प्रत्येक बदलाव केँ रमेश मोने मोन अनुभव कऽ रहल छलाह. हुनको नीक लागैत छलनि. मुदा महानगरक बात सोचि ओ डरा जैत छलाह. एतय एक लोकक आवश्यकता भेला पर एक दर्जन लोक उपस्थित रहैत छलनि. कलकत्ता मे दिन भरि रेखा एकसरि बैसल रहतीह. किओ अप्पन लोक गप्प करबाक लेल नहि भेटतनि. तबीयत केहनो रहनि काज करैये पड़तनि. एहि गाम मे छोटा बाबु सन क्लर्कियल नौकरी अच्छैतो हुनकर एत्तेक इज्जत रहैत छलनि जे कलकत्ता मे पैघ सँ पैघ आफिसर कें नहि भेट सकैत छल. एतय प्रत्येक पावनि-तिहार कें रेखा आ रमेश बहुत नीक सँ मनबैत छलैथ. गाम पर किनको घर मे भगवानोक पुजा बिना हिनका लोकनिक उपस्थितिक सम्पन्न नहि होएत छल. ओतय लाखों लोकक बीच मे ओ लोकनि बिल्कुल हेराएल रहताह. रमेश जतेक सोचैत छलथिन हुनका ओतेक डर लागैत छलनि. हुनका एक्के टा चीज मोन केँ प्रसन्न करैत छलनि, रेखाक अति उत्साहित सुन्दर आ दिव्य मुखमण्डल. विवाहित जीवन एक अघोषित समझौताक नाम थीक, हुनका आब नीक सँ बुझि मे आबि रहल छलनि.

 

(4)

रेखा वेटिँग रूमक कोनटी वाला बेन्च पर बैसल ई सब गप्प सोचि रहल छलीह. गाड़ी आबय मे मात्र पाँच मिनट छल. रेखा केँ देखाए पड़लनि जे रमेश टिकट वाला खिड़की केँ बन्द कऽ चुकल छलाह. रेखाक ध्यान फेर सँ ओहि खिड़कीक उपर मे लिखल लाईन पर चलि गेलनि, "यह खिड़की गाड़ी आने के एक घँटे पहले खुलती है और गाड़ी आने के पाँच मिनट पहले बन्द हो जाती है". ओ देखि रहल छलीह जे सिगनलक चाभी लऽ रमेश स्टेशन परिसर सँ निकलि चुकल छलाह. यात्रीगण सब प्लेटफार्म पर ट्रेनक बाट ताकि रहल छल. सबक किओ रमेश दिस आशाक नजरि सँ देखि रहल छल, मानु रमेशक हाथ मे सिगनल देबाक चाभी नहि, अपितु समुचा ट्रेनक चाभी हो, जेना ट्रेन रमेशक इशारा पर चलैत हो.

किछुए देर मे रमेश सिगनल दऽ केँ लाल-हरियर रँगक लालटेन लऽ केँ ठाढ़ छलाह. छोट स्टेशनक इएह नीक गप्प. छोटा बाबु सर्वे सर्वा. टिकट काटबाक हुनके जिम्मेदारी, सिगनल डाउन करबाक हुनके जिम्मेदारी, आ लाल हरियर झँडा आ लालटेन देखेबाक हुनके जिम्मेदारी. बेसी जिम्मेदारी निर्वाह केला सँ बेसी सम्मान भेटैत छैक. इएह कारण छल जे सरायगढ़ आ भपटियाही दुनु गामक लोक अपन स्टेशन परक छोटा बाबु केँ बहुत सम्मान करैत छलनि.

ट्रेन आबि चुकल छल. पान वालाक दोकानक आगु मे राखल कोयलाक चुल्हा सँ धुआं निकलनाय बन्द भऽ गेल छल. ओहि चुल्हा सँ आगि दह-दह कऽ केँ जरि रहल छल. चाय बेचय वाला छोटू जोर जोर सँ चीकरि रहल छल, चाय-चाय-चाय. झाल-मुरहीवला ट्रेन सँ निकलि प्लेटफार्म पर आवाज लगा रहल छल, "बारह मासाला तेरह स्वाद, झाल मुरही की है अनोखी बात". रेखा देखलनि ट्रेन सीटी दऽ रहल छल आ स्टेशन सँ नहुँए नहुएँ ससरि रहल छल.

जे यात्री उतरि गेल छल ओ रुकि केँ रमेश केँ कहि रहल छल "प्रणाम छोटा बाबु!"

 "प्रणाम छोटा बाबु",

रमेश किनको अनादर नहि करैत छलाह. प्रत्येक प्रणामक उत्तर हाथ जोड़ि के दैत छलाह.  कनि काल मे एकटा लोक रमेश सँ बात करय लागल. हुनका देखि किछु आओर लोक रुकि गेल. किछुए कालक बाद ओतय दस बारह लोकक जमघट लागि गेल. सब किओ मिलि रमेश केँ गोला बना केँ घेरि नेने छल. रेखा दुरहिं सँ लोक सभऽ क बात सुनबाक प्रयत्न करय लागलीह.

ओहि मे सँ एक आदमी बाजि रहल छल, "ई कोना भऽ सकैत छैक, लागैत अछि किओ अहाँ के 'किछु' कहि देलक अछि, हमरा एक बेर नाम बताऊ, अहाँ के अनुचित कहए वाला केँ थूक फेकि केँ चाटय पड़तनि". दोसर लोक कहैत छलनि, "जे यदि हमरा सँ कोनो गलती भऽ गेल होमय तऽ कहु". तेसर लोक कहैत छलनि जे "मेम साहेब केँ कोनो दिक्कत भेल हो त कहल जाए, हम सब मिलि केँ समस्याक समाधान कऽ देबनि". रमेशक सब लोकनि केँ एकेटा जवाब छल, "एतय रेखाक तबीयत नीक नहि रहि रहल छलनि तेँ हम ट्रान्स्फर करा रहल छी.

ई पहिल बेर छल जखन रमेश अपन ट्रान्सफरक गप्प गामक लोक केँ कहने छलथिन. रेखा बांकि लोक केँ रमेश सँ बात करैत देखि चुकल छलीह. ओ प्रत्येक लोक हुनकर ट्रान्सफर सँ आश्चर्यचकित छल. किछु लोक दूरहि सँ रेखा केँ देखि लेने छल. रेखा मे अस्वस्थताक कोनो लक्षण नहि देखा पड़ि रहल छलनि. लोक ट्रांसफर रुकेबाक लेल कहैत छलनि. नहि जानि किएक एहि दुनू गामक लोक मे आग्रह कम आ अधिकार बेसी छलनि. गामक कोनो लोक रमेशकेँ आनठामक नहि बुझैत छल. तीन साल में सबकिओ बिसैर गेल छल जे रमेश आनठाम सँ ट्रांसफर भऽ के आएल छथि.

रेखा अधिकार देखाबैत ट्रांसफर रोकबाक लेल सलाह दैत लोक सबकेँ देखि नेने छलीह. किछु लोक तऽ एना मुँह बनेने छल जे हुनका लोकनि सँ बिना पुछने बिना रमेश ट्रांसफर कोना करवा लेलनि. रेखा सोचय लागलीह, गामक लोक दोसराक नीजि जिंदगी में एतेक दखलांदाजी किएक करैत छैक. कतेक सँघर्षक बाद ट्रांसफर सम्भव भेल छलनि. मुदा गामक लोकक लेल रमेश आनगामक कहाँ छलथि.

रमेश रेखाक मूड कें निहारि चुकल छलाह. जखन बांकि लोक सब चलि गेल, तखन रेखाक मोन बहलेबाक लेल बजलाह, "देखु ने गुलमोहरक गाछ केहेन लागि रहल छैक, एकोटा टा पात नहि देखा रहल छैक, सगरे फुले-फुल, मुदा किछुए दिनक बाद एहि मे पतझड़ आबि जाएत. नहि पाते रहत आ नहिए फुले".

"हाँ से इहो गुलमोहरक गाछ हमरे लोकनिक ट्रान्सफर बाट ताकि रहल छैक, अन्यथा आब तऽ पतझड़क टाइम आबि गेल छैक".

"अहाँ मुड बहुत रोमान्टिक लागि रहल अछि".

"नहि एहेन कोनो बात नहि छैक. हम पछिला एक घँटा सँ प्लेटफार्म केँ निहारि रहल छलहुँ. प्लेटफार्म पर आधा भाग मे हरियर हरियर दुबि आ कात लागल अनगिनत गुलमोहरक गाछ. इ हरियर आ लालक समावेश निष्ठूर-सँ-निष्ठूर लोक केँ कवि बना दऽ सकैए".

रमेशक हाजिर जवाब छल, "ई किलोमीटर धरि पसरल हरियर दुबि आ कात लागल गुलमोहरक गाछ, आई कतेको दिन सँ छल, मुदा आई पहिल बेर अहाँ अनुभव केलहुँ, तेँ हम कहैत छी, आई अहाँ बहुते रोमान्टिक मुड मे छी"

रेखा किछु नहि बाजल छलीह. स्तब्धताकें तोड़बाक लेल रमेश बजलाह, "रोमान्टिकऽ क मतलबे प्रकृति-प्रेम सेहो होइत छैक, अहाँक प्रकृति प्रेम हमरा नीक लागल"

गप्प करैत करैत रेखा आ रमेश घर गेलैथ. गामक लोक अपन अपन गाम. मुदा साँझे मे रमेशक ट्रन्स्फरक चर्चा आगि जकाँ पसरि गेल. जे सुनय ओ दस लोक केँ आओर सुनाबय. सब किओ एके बात कहैत छलथिन "बहुतो छोटा बाबु एलैथ आ गेलैथ मुदा रमेश बाबु सन किओक नहि. एहेन मिलनसार लोक भेटनाय मुश्किल. गाम मे एना रीति गेलैथ जेना एहि गामक लोक होइथि." सब किओ ई जरुर कहैथ जे "हुनका जरुर किओ किछु अनुचित कहि देलकनि वा किछु अनुचित कऽ देलकनि".

रमेश कोन कारण सँ ट्रान्सफर करा लेलैथ से भोर भेने धरि समुचा गाम मे चर्चाक विषय बनि गेल. आरोप प्रत्यारोपक अनगिनत दौर चलल. कोनो एहेन लोक नहि बचल छल जिनका उपर मे आरोप नहि लागल हो. पैघ परिवार मे एक दोसर केँ दोषी साबित करय लागल, पुरान दुश्मनी वाला दू परिवार एहि मौका केँ भजेबाक कोशिश करए लागल आ दुनु गामक छुटभैया नेता लोक दोसर गाम केँ दोषी बताबे लागल. स्त्रीगण लोकनि, "मेम साहेब केँ के की कहने छल" तकर लेखा जोखा लगाबय लागलीह. सब किओ अपन स्तर पर काज करैत छल, आ रमेश केँ एहि बातक पूरा समाचार भेटि रहल छलनि.

गामक पढ़ल लिखल आ प्रगतिवादी नवयुवक आपस मे तय केलनि जे रमेश सँ गामक दिस सँ माफी मांगि लेल जाए. लगभग एक दर्जन एहेन यूवकक टोली स्टेशन पर जा केँ रमेश सँ अधिकारिक रुप सँ माफी मांगलकनि. मुदा नवयुवक एहि टोली सँ पहिने सैकड़ो लोक माफी मांगि चुकल छल. दोसर किओ आओर रहितैक तऽ कोनो आओर बात, गाम मे पढ़ल लिखल युवकऽ क बहुत मुल्य होइत छैक आ रमेश ओहि मुल्य केँ नीक जेकाँ चीन्हैत रहथि. तेँ हठाते ओहि टोली केँ निराश करए नहि चाहैत छलाह. टालबाक लेल ओ किछु लोक केँ कहि देने छलाह जे ट्रांसफर रोकबा लेताह. ई गप्प सेहो दुनु गाम मे पसरि गेल. गामक सब लोक एहि बात पर हठाते विश्वास नहि केलनि. समाज दुइ मत मे विभाजित भऽ गेल. किछु लोकक मत छलनि जे रमेश कोनो बात सँ आहत छलाह तेँ ट्रान्सफर करा लेलैथ. दोसर लोकनिक मत छलनि जे रमेश आई धरि कहियो फुसि नहि बाजल छथि, तेँ ट्रान्सफर रोकेबाक गप्प सत्य थीक.

विश्वास-अविश्वास, उम्मीद-निराशा, कचोट-उत्साहक आपाधापी मे ओ दिन आबि गेल जहिया रमेश केँ सदिखनक लेल ई दूगामक बीच वाला स्टेशन छोड़ि केँ जेबाक छलनि. नव छोटाबाबु अपन पदग्रहण क चुकल छल. एगारह बजेक गाड़ी सँ ओ पूरे समान आ पत्नी सँग विदा होयबाक लेल तैयार छलाह. गामक लोक एखनो दू मत मे विभाजित छल. किछु लोक एखनो धरि सोचैत छलाह जे रमेश रुकि जायत. ट्रान्सफर नहि भेल छनि. एहेन सोच जाहि मे कल्पनाक उड़ान बेसी आ यथार्थक धरातल कम. कल्पनाक बाते अलग, कोनो बातक कल्पना करबा मे मालगुजारी नहि लागैत छैक..

कल्पनाक उड़ान जतेक नीक लागैत छैक ओतबी कष्टदायक यथार्थक धरातल होइत छैक. एखन यथार्थ ई छल जे एगारह बजेक ट्रेन प्लेटफार्म पर आबि चुकल छल. रमेश आ रेखा ट्रेन मे बैसि चुकल छलैथ. गामक एहेन लोक जे यथार्थता केँ पहिने स्वीकार कऽ नेने छलैथ, रमेशक लेल किछु ने किछु आनने छल. जे बेसी काल धरि कल्पना सवारी करैत छलाह ओ दौड़ि के गाम गेलाह आ रमेशक लेल किछु ने किछु उपहार आनि नेने छलाह. हरियर दुबि पर ठाढ़ गार्ड सीटी बजा देने छल. ट्रेन अपन सीटी बजेलक आ नहुएँ नहुएँ ससरे लागल. लोक सब एखनि धरि रमेश केँ पोटरी थम्हा रहल छलाह. रमेश चाहियो केँ किनको मना नहि कऽ पाबैत छलाह. किओ अदौरी, किओ कुम्हरौरी, किओ अम्मट, किओ पौती किओ मौनी. जेहेन लोक तेहेन उपहार. दूर ठाढ़ किछु स्त्रीगण लोकनि घोघ तऽर सँ नोर पोछैत छलथिन. रमेशक आंखि डबडबा गेलनि. बगल मे बैसल रेखा हुनकर भीजल पीपनी देखि नेने छलीह. अपन दाहिना हाथ सँ हुनकर बामा मुट्ठी पकड़ि नेने छलीह.

रमेश देखलैथ जे रेखाक मुँह पर आशाक अनन्त किरण पसरल छल. हुनकर ललाट आई सबसँ बेसी दैदीप्यमान लागैत छल. मोन मे एक सँतुष्टि भेलनि जे अपना लेल नहि तऽ कम सँ कम रेखाक लेल खुश रहबाक चाही. आखिर ट्रान्सफरो तऽ हुनके लेल करौने छलथिन. ओ खुश भऽ गेलथि, मुदा क्षणिक कालक लेल. गामक हजार लोकऽ क देखभाल वाला जिन्दगी छोड़ि ओ कलकत्ताक काटि खा जेबा वाला एकाकी जिन्दगी रमेश केँ पहिल बेर असुरक्षित लागय लागलनि. हरियर दुबि आ लाल गुलमोहरक छटा पाछु छुटि चुकल छल. रेखाक हाथ एखनो धरि हुनकर हाथ पर छलनि. प्रत्येक स्पर्श एक सँदेश नुकाएल रहैत छैक. रेखाक स्पर्श मे आश्वासन आ कृतज्ञताक सँदेश छल. ट्रेन सरायगढक सीमा सँ बाहर निकलि चुकल छल. रमेश एक बेर फेर सँ रेखाक ललाट पर सँतुष्टिक भाव पढ़बाक भरिसक प्रयत्न करय लागलाह.

 

 

 

 

1 टिप्पणी:

  1. कथा पढलहुँ। सुन्दर लागल। छल-छलाह, अछि-छथि मे एकरूपता नीक रहत। उपन्यासक शिल्प कथामे आएल अछि। कथाक अवधि कम रहलासँ कथनमे तीव्रता अबैत छैक। बाँकी विस्तारकें कोनो पात्रक मनकथा (फ्लैशबैक)क शैलीमे देखाओल जा सकैत अछि। कथ्य सोझराएल छै, से नीक लागल।

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